मोदी की आँधी ने कांग्रेस और अन्य क्षेत्रीय पार्टियों को जड़ से उखाड़ फेंका

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कल 23 मई को देर रात तक मतगणना का दौर चलता रहा लेकिन दोपहर बाद से हीं यह साफ़ होने लगा की पीएम मोदी के नेतृत्व में भाजपा पूर्ण बहुमत के साथ एक बार फिर से सरकार बनाने जा रही है. लोकसभा चुनाव 2019 का फ़ाइनल रिज़ल्ट में भाजपा का कई एग्ज़िट पोल से भी अधिक अच्छा प्रदर्शन रहा. यह भाजपा के ऐतिहासिक जीत के साथ हीं कांग्रेस की ऐतहसिक हार भी है. वैसे अगर कांग्रेस और अन्य क्षेत्रीय पार्टियों के प्रदर्शन को देखें तो ये बस हार नहीं है परंतु इसे कहा जाना चाहिए की मोदी की आँधी ने कांग्रेस और अन्य क्षेत्रीय पार्टियों को जड़ से उखाड़ फेंका.

चाहे विपक्षी पार्टियाँ कितना भी बहाना बना ले आरोप लगा ले चुनाव आयोग, EVM मशीन, और पीएम मोदी पर लेकिन 2019 का परिणाम ने साबित कर दिया की जनता का जनादेश और भरोसा मोदी के साथ है. इस प्रचंड जनादेश ने अब ये भी साबित कर दिया है की भारत के मतदाता का सोच और सोचने का तारिक बदल गया है जिसे सिर्फ़ भाजपा पार्टी, अमित साह और पीएम मोदी समझ पर रहे और उस बदले हुए सोच से जुड़ पा रहे हैं.

लोकसभा 2019 का जनादेश ने एक और बात साफ़ कर दिया है की अब देश में जनमत हासिल करना आसान नहीं है चाहे वो कितनी ही पुरानी राजनीतिक पार्टी क्यों ना हो, अब मतदाता सिर्फ लोकसभा के उम्मीदवार को नहीं बल्कि शीर्ष पर बैठे नेताओं को देख कर या कहें की प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार को देख कर अपना मत देते हैं. यही कारण है की स्थानीय स्तर पर उम्मीदवार से नाराज़गी के बाद भी लोगों ने कई नेताओं को सिर्फ मोदी के नाम पर वोट दिया और जिताया.

लोकसभा चुनाव के पहले और चुनाव के दौरान भी मीडिया और भाजपा के नेताओं द्वारा एक सवाल उठाया जा रहा था जिसका विपक्षी पार्टी के पास कोई जवाब नहीं था जो कहीं ना कहीं इस शर्मनाक हार का कारण रहा. इस बात में कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी की बरी तादाद में कांग्रेस और क्षेत्रीय पार्टियों के मूल मतदाताओं ने भी भाजपा गठबंधन को वोट दिया है. विपक्षी पार्टियाँ मोदी और भाजपा के विचारधारा का एक मज़बूत विकल्प देने में पूरी तरह से विफल रही, शायद यही कारण है की जाती और संप्रदाय की राजनीति से ऊपर उठकर लोगों ना भाजपा को वोट दिया.

नरेंद्र मोदी के नाम पर भाजपा को मिले ऐतिहासिक जनादेश में पार्टी का अभी तक का सबसे अच्छा परदर्शन रहा है, भाजपा अकेले अपने सहयोगी पार्टियों के बिना भी पूर्ण बहुमत में है. भाजपा कुल 303 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी वहीं कांग्रेस सिर्फ़ 52 सीटों के साथ दूसरी सबसे बड़ी पार्टी और डीएमके 23 सीटों के साथ तीसरी सबसे बड़ी पार्टी बनी. एनडीए यानी भाजपा गठबंधन को कुल 353 और यूपीए यानी कांग्रेस गठबंधन को कुल 91 सीटें मिली.

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बिहार में सभी सीटें जितने का दावा करनी वाली गठबंधन सिर्फ़ एक सीट जीत पाई वहीं पिछले विधानसभा में सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर उभरे लालू यादव की पार्टी आरजेडी अपना खाता तक खोलने में असफल रही. उत्तर प्रदेस में बीएसपी और एसपी के गठबंधन को 15 सीटें मिली, भाजपा को 64 और कांग्रेस को सिर्फ़ एक रायबरेली की सीट जहाँ ख़ुद सोनिया गांधी चुनाव मैदान में थी. यहाँ तक की कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी तक अमेठी में स्मृति ईरानी से चुनाव हार गए.

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गुजरात, हरियाणा, दिल्ली, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, आंध्रा प्रदेश, राजस्थान, जैसे प्रमुख और बड़े राज्यों में कांग्रेस का खाता भी नहीं खुला. ऐसा लग रहा है जैसे कांग्रेस पार्टी अब अपने कार्यकर्ता और समर्थकों के लिए बोझ बन गयी है. इस जनादेश के बाद भी अगर कांग्रेस पार्टी के कार्यकर्ता और नेता पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी की जिम्मेदारी तय नहीं करते और बस एक परिवार की पार्टी जैसी मानसिकता से बाहर नहीं निकलते तो अगली बार और भी बुरा हाल हो सकता है. ख़ुद राहुल गांधी और सोनिया गांधी को समझना परेगा की पीएम मोदी और भाजपा की इस प्रचंड जीत में सिर्फ़ जनता नहीं राहुल गांधी और कांग्रेस का एक परिवार भर में पार्टी को सीमित करने की प्रयास का बहुत बड़ा सहयोग रहा है.

हालाँकि राहुल गांधी वायनाड से चुनाव जीतने में सफल रहे लेकिन 40 साल में पहली बार ‘गांधी परिवार’ अपनी पारम्परिक सीट अमेठी से चुनाव हार गाए. कांग्रेस का गढ़ माने जा जाने वाली अमेठी सीट से भारतीय जनता पार्टी की उम्मीदवार स्मृति ईरानी ने कांग्रेस अध्यक्ष को 55 हजार 120 मतों के अंतर से पराजित किया. स्मृति को चार लाख 67 हजार 598 मत मिले जबकि कांग्रेस अध्यक्ष को चार लाख 12 हजार 867 मत प्राप्त हुए.