23 जून 1985 , इंडियन एयरलाइंस का विमान विमान संख्या 182 आयरलैंड वायु सीमा क्षेत्र में लगभग 31,000 फीट ऊंचाई पर उड़ रहा था . कुछ ही देर में विमान लंदन के हीथ्रो हवाई अड्डा पर उतरने वाला था. पायलट ने एटीसी(ATC) से संपर्क कर लिया था और वह लैंडिंग की तैयारी में लग गया. परंतु अचानक से विमान के पार्सल सेक्शन में विस्फोट होता है और विमान हवा में ही दो टुकड़ों में बट जाता है. विमान अचानक से हीथ्रो हवाई अड्डा ATC के राडार से गायब हो जाता है. कंट्रोल टीम इसकी पता करने में जुट जाती हैं लेकिन उन्हें कुछ पता नहीं चल पाता है जिसकी सूचना सभी संबंधित सरकार एवं एयर इंडिया को दी जाती है.
ठीक उसी समय जापान के Narita International Airport पर एक विस्फोट होता है. जहां पर सामान को टोरंटो से आये एक विमान से लेकर एयर इंडिया के एक विमान में रखा जा रहा था जो बैंकॉक जाने वाली थी. विस्फोट कन्वेयर बेल्ट पर हुआ जिसमें 2 ग्राउंड स्टाफ मारे गये.
वापस बात करते हैं विमान संख्या 182 जो कि अचानक आयरिश वायु सीमा क्षेत्र से गायब हो गया .
एयर इंडिया का विमान Emperor Kanishka (कनिष्क) विमान संख्या 182 कुल 329 यात्रियों को लेकर टोरंटो से दिल्ली आ रहा था. उसमे ज्यादातर लोग कनाडाई हिन्दू नागरिक थे जो अपने रिस्तेदारों से मिलने भारत आ रहे थे.
आइरिश नेवी के अधिकारियों ने करीब 2 घंटे के बाद विमान के मलबे को देखे जाने की सूचना दी. अब तक यह साफ हो चुका था की एयर इंडिया की विमान किसी कारण क्रैश हो चुका है. सभी राहत और बचाव कार्य में लग गए. इसमें मुख्य भूमिका निभाई आइरिश नेवी और रॉयल एयर फोर्स ने. 131 शव को बहार निकला जा सका बाकियों का कोई पता नही चल पाया.
शुरुआती जाँच में कुछ भी कह पाना मुश्किल लग रहा था की किन कारणों ये हादसा हुआ होगा परन्तु Narita Airport (Tokiyo) के विस्फोट को जब इससे जोर कर देखा गया तो सुरक्षा एजेंसी को लीड मिली. जाँच में यह पाया गया की दोनों ही फ्लाइट में सामान रखने वाले सख्स ने बोर्डिंग पास लिया, सामान चेक इन किया, लेकिन खुद विमान में सवार नही हुए.
बब्बर खालसा
शक की सुई बब्बर खालसा नामक सिख आतंकवादी संगठन पर गया. इसको समझने के लिए हमें उस समय भारत के पंजाब प्रांत के घटनाक्रम पर नज़र डालना जरूरी है .ये वो समय था जब भारत सरकार खालिस्तान समर्थक आतंकवादियों पर सीधी कार्यवाही कर रही थी. ऑपरेशन ब्लू स्टार का बदला लेने के लिए सिक्खों ने 31 अक्टूबर 1984 इंदिरा जी की हत्या उन्ही के एक सिख बॉडीगार्ड ने कर दी थी. जिसके बाद हुए दंगे में भरी संख्या में सिख समुदाय के लोग मारे गये थे. इस बात का बदला लिए जाने के लिए दुनिया भर में फैले खालिस्तान समर्थक सिख योजनायें बना रहे थे.
Vancouver (वैंकोवर) में सिख समुदाय
1970 के आसपास बहुत सारे सिकरी रिफ्यूजी ने वेस्टर्न कनाडा में बेहतर जिंदगी की तलाश में आकर बस गए थे 1980 के आते-आते वेंकूवर जो ब्रिटिश कोलंबिया का पार्ट था भारत के बाहर सिक्खों का सबसे बड़ा ठिकाना बन गया उसी समय भारत के पंजाब में सिक्खों द्वारा उन्हें और अधिक स्वायत्तता दिए जाने को लेकर आंदोलन चल रहा था. जिसमें सिखों को वहां के संसाधनों पर हिंदुओं एवं दूसरे वर्गों के अपेक्षा अधिक अधिकार दिए जाने की मांग की जा रही थी बाद में यह मांग अलग खालिस्तान देश बनाने में बदल गयी.
अपनी मांगों को मनवाने के लिए सिखों ने जरनैल सिंह भिंडरावाले के नेतृत्व में धर्म युद्ध मोर्चा का गठन किया शुरुआत में तो पंजाब के अकाली दल ने इसका विरोध किया लेकिन अगस्त 1982 में ऐसे में चरण सिंह लोंगवाल के नेतृत्व में धर्म युद्ध मोर्चा को अकाली दल ने भी समर्थन दे दिया, शुरुआत में यह अहिंसक रहा लेकिन समय के साथ ये एक हिंसक आंदोलन में बदल गया। 1982 से जून 84 के बीच में लगभग 165 हिंदू और निरंकारी तथा 39 सिखों को मार दिया गया इसी दौरान वहां के मुख्यमंत्री को भी मारने की असफल कोशिश की गई जिसमें तात्कालिक मुख्यमंत्री के दोनों अंगरक्षक मारे गए.
इसी बीच में 1983 में आतंकवादियों ने भिंडरावाले के नेतृत्व में स्वर्ण मंदिर अकाल तख्त पर कब्जा कर लिया और स्वर्ण मंदिर को बोलो एक किले की तरह इस्तेमाल करने लग गया, इस काम में हथियारों की सप्लाई पाकिस्तान और ISI से मिल रही थी.
ऑपरेशन ब्लू स्टार
स्थिति को संभलता ना देख प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने शुरुआत में तो बातचीत की कोशिश की लेकिन जब में आतंकवादियों से सकारात्मक जवाब नहीं मिला तो उन्होंने सेना को स्वर्ण मंदिर पर आक्रमण करने का आदेश दे दिया. जिसे नाम दिया गया ऑपरेशन ब्लू स्टार, ऑपरेशन 1 से 8 जून तक चला जिसमें सेना ने भिंडरावाले को मार गिराया और अकाल तख्त को आजाद करवा दिया जिसे सिखों ने अपने धर्म के प्रति अपमान के तौर पर लिया और इसी के तहत इंदिरा गांधी की हत्या कर दी गई। साथ हीं देश-विदेश में फैले खालिस्तान समर्थक आतंकवादियों ने भारत सरकार से बदला लेने का योजना बनाया.
साज़िश
भारत सरकार से बदला लेने के लिए बब्बर खालसा नमक संगठन का स्थापना कनाडा के वैंकूवर में किया गया, जिसका प्रमुख था तलविंदर सिंह परमार. परमार के संपर्क में तीन और लोग थे जिनका नाम था अजय सिंह बागरी, इंदरजीत सिंह रैयत, और रिपुदमन सिंह मलिक.
इन चारों ने ही मिलकर एयर इंडिया की फ्लाइट को हवा में विस्फोट से तबाह करने का प्लान बनाया. इसके लिए ने डायनामाइट को बैटरी से जोड़ा और टाइमर की मदद से इसे विस्फोट करने का प्लान बनाया. अंजाम देने से पहले इन लोगों ने वहां के जंगल में जाकर इसकी टेस्टिंग भी की जिसमें उन लोगों ने दो डायनामाइट के छड़ के साथ बैटरी को जोड़कर विस्फोट किया और यह निश्चित किया कि उनका बनाया गया बम सही से काम कर रहा है. सब सुनिश्चित कर लेने के बाद उन लोगों ने ऐसे दो और बम बनाए जिसमें उन लोगों ने डायनामाइट के छड़ों की संख्या बढ़ा दी, जिससे कि और ज़ोरदार विस्फोट हो सके.
इसके बाद लोगों ने दो टिकट बुक कराया, जिसमें से एक एल सिंह तथा दूसरा एम सिंह के नाम से किया गया। एल सिंह का रिजर्वेशन CP एयर फ्लाइट 003 में था जो टोक्यो जा रही थी और फिर वहां से एयर इंडिया के फ्लाइट 301 से बैंकॉक के लिए. उसी तरह एम सिंह ने Vancouver से टोरंटो और टोरंटो से दिल्ली आ रही एयर इंडिया की उड़ान संख्या 182 में बुक किया. इन दोनों लोगों ने सामान तो चेकिंग कर दिया लेकिन खुद विमान में सवार नहीं हुए. जैसा कि इन लोगों ने टाइम बम लगाया था समय आते हीं दोनों बम फट गया. पहला बम टोक्यो एयरपोर्ट पर उस समय फटा जब सामान को कनाडा से आए विमान से एयर इंडिया के विमान संख्या 301 में ट्रांसफर किया जा रहा था, बम कन्वेयर बेल्ट पर ही फट गया जिससे जान-माल के नुकसान ज्यादा नहीं हुआ वहां पर काम कर रहे दो जापानी नागरिक मारे गए, इसके ठीक 55 मिनट बाद दूसरा बम एयर इंडिया की फ्लाइट 182 में फटा और विमान को पूरी तरह नष्ट कर दिया. उस समय अभिमान आयरलैंड के उड़ान क्षेत्र में था और कुछ ही देर में लंदन के हीथ्रो एयरपोर्ट पर लैंड करने वाला था विमान एटीसी के कंट्रोल में था और महज 30 मिनट रह जाने के कारण विमान का कैप्टन लैंडिंग की तैयारी में जुट गया था. इसी बीच अचानक विस्फोट हुआ और विमान हवा में दो टुकड़ों में बट गया विस्फोट इतना ताकतवर था की विमान के सारे रप्ट्रॉनिक ने तत्काल प्रभाव से काम करना बंद कर दिया और इस तरह विमान अचानक से एटीसी के रडार से गायब हो गया स्थिति को देखते हुए एयरपोर्ट अथॉरिटी ने सभी संबंधित सरकारों एवं एयर इंडिया को इसकी जानकारी दे दी.
सर्च ऑपरेशन
विमानलास्ट लोकेशन के हिसाब से सर्च अभियान चलाया गया. 2 घंटे के अंदर आयरिश नेवी के एक जहाज को विमान का मलबा दिखा. आयरिश नेवी और रॉयल एयरफोर्स ने मिलकर राहत एवं बचाव कार्य किया परंतु दुर्भाग्यवश कोई भी जिंदा नहीं मिला. कुल 131 शवों को बरामद किया गया सबों के पोस्टमार्टम रिपोर्ट से यह पता चला कि बहुत सारे लोग पानी में डूब कर मरने से साथ ही कुछ लोग विस्फोट की चपेट में आकर मारे गए थे, कुछ लोग ऐसे भी थे जो विमान से बाहर निकलने की कोशिश करते मरे थे और उनके शरीर पर खरोच के निशान भी पाए गए थे.
जाँच
इस घटना के बाद जांच कमेटी गठित की गई क्योंकि मरने वाले ज्यादातर लोग कनाडाई नागरिक थे तो वहां इसकी जांच शुरू हुई जांच में यह पाया गया कि भारत सरकार पहले हीं इस बात को लेकर कनाडा को आगाह कर चुकी थी की खालिस्तानी आतंकवादी एयर इंडिया को अपना निशाना बना सकते हैं. जांच में यह भी पता चला कि परमार और दूसरे लोगों पर वहां की खुफिया एजेंसी पहले से ही नजर रख रही थी और उनके इरादों की भनक एक फोन टेप से भी पता चला था. कहा तो यहां तक जाता है कि Canadian Security Intelligence Service (CSIS) के एक एजेंट ने इन लोगों को जंगल में बम विस्फोट करते समय भी देखा था और इसकी जानकारी सरकार को दे दी थी लेकिन उसे गंभीरता से नहीं लिया गया.
बहुत लंबी जाँच और सुनवाही के बाद इंदरजीत सिंह रेयात को 2006 में सजा सुनाई बाकी सभी अभियुक्तों को सबूत के अभाव में छोड़ दिया गया. परमार 1992 में पंजाब पुलिस के एनकाउंटर में मारा गया.