2002 के गुजरात दंगे में बिलकिस बानो के साथ जो हुआ वो साम्पद्रायिक हिंसा का असली चेहरा है, अगर आप जानेंगे कि बिलकिस बानों के साथ उस दंगे में संप्रदायिकता के नाम पर क्या-क्या हुआ तो आपको जाती-सम्प्रदाय और मानवता से घिन्न हो जाएगा. ऐसा नहीं माना जा सकता है की ऐसी जघन्न अपराध सिर्फ बिलकिस बानो के साथ हुआ या बिलकिस बानो के साथ इसलिए हुआ क्योंकि वो किसी खास सम्प्रदाय से थी; ऐसा सोचना भी अनुचित है क्योंकि हो सकता है हर दंगे में ऐसे होता हो, फिर वो इंदिरा गांधी के मौत के बाद दिल्ली का दंगा हो या 2002 का गुजरात दंगा हो या हाल फ़िलहाल में चल रहा मणिपुर का दंगा हो. फर्क बस इतना है कि बिलकिस बानो हिम्मत दिखा पाई हक़ीक़त बाहर लाने कि और अपने साथ हुए जघन्न अपराध के दोषी को सजा दिला पाने कि.
अब ये मामला लगभग 21 साल से भी ज्यादा पुराना हो गया है लेकिन गुजरात सरकार, भाजपा और सरकारी सिस्टम ने चुनावी फ़ायदे के लिए सुप्रीम कोर्ट के साथ फ़्रॉड कर ऐसे अपराधियों को जेल से बाहर निकाला जिसे शायद खुली हवा में साँस लेने का कोई अधिकार नहीं है. भाजपा सरकार ने सारे नियम क़ानून को ताक पर रखकर ऐसे अपराधी को जेल से रिहा करवाया जिसे अदालत ने दोषी पाया था और सजा सुनाया था एक गर्भवती महिला की पिटाई, सामूहिक दुष्कर्म और एक बच्ची को परिवार के सामने पटक कर मार डालने समेत परिवार के 6 अन्य लोगों की हत्या का. क्या कोई राजनेता या राजनीतिक पार्टी इतनी कमजोर हो सकती है अपने फ़ायदे के लिए ऐसे घिनौने अपराधियों का सहारा ले?
15 अगस्त 2022 को गुजरात सरकार ने बिलकिस बानो के 11 अपराधियों को नियम की विरुद्ध ही नहीं बल्कि सुप्रीम कोर्ट के साथ फ़्रॉड करके रिहा करवा लिया, ध्यान देने वालों बात ये है की उसी साल नवंबर-दिसंबर में गुजरात विधानसभा का चुनाव होना था. क्या ये सिर्फ एक संयोग था? सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले और टिप्पन्नी ने ये साफ़ कर दिया की 2002 के गुजरात दंगे में गर्भवती महिला की पिटाई, सामूहिक दुष्कर्म और मासूम के समेत कई हत्या करने वाले 11 घृणित अपराधियों को जेल से रिहा करना वो भी विधानसभा चुनाव के ठीक पहले कोई संयोग नहीं था बल्कि एक सोची समझी पटकथा थी साजिश, घृणित सोच, चुनावी ध्रुवीकरण और असीमित ताक़त के नंगे नृत्य की.
उसी घृणित सोच का सबूत दिया गोधरा के BJP विधायक सीके राउलजी [C.K. Raulji] जो ना सिर्फ़ वर्तमान विधायक है ब्लकी वो बिलकिस बानो रेप और मर्डर केस के दोषियों को छोड़ने का फैसला करने वाली कमेटी के सदस्य भी था. बीजेपी विधायक सीके राउलजी ने पत्रकार से बातचीत के दौरान कहा कि क्राइम किया कि नहीं किया, यह मुझे पता नहीं. लेकिन क्राइम के बारे में कोई इनटेंशली भी हो सकता है. दोषियों की जो एक्टिविटी थी, वह बहुत अच्छी थी. वे ब्राह्मण थे और ब्राह्मण के संस्कार अच्छे होते हैं. यही नहीं इसके बाद एक दोषी के सरकारी कार्यक्रम में मंच पर बिठाए जाने, और भाजपा के तरफ से चुनावी सभा में भाग लेने पर भी विवाद खड़ा हुआ था. ये सब दिखता है की इन अपराधियों को कैसे और किन लोगों का सपोर्ट प्राप्त था.
सुप्रीम कोर्ट की दो सदस्यीय पीठ ने 11 दोषियों को रिहा करने के गुजरात सरकार के फ़ैसले को रद्द किया.
15 अगस्त को 11 दोषियों को गुजरात सरकार द्वारा रिहाई के फ़ैसले के खिलाफ बिलकिस बानो ने देश की सर्वोच्च न्यायालय में अपील किया था जिसकी सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट की दो सदस्यीय पीठ ने दोषियों को रिहा करने के गुजरात सरकार के फ़ैसले को रद्द कर दिया और सभी 11 दोषियों दो हफ्ते के अंदर सरेंडर करने का आदेश दिया है.
सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार के फैसले को पलटा, इसके साथ ही गुजरात सरकार को फटकार लगाई और कहा, यह फैक्ट के नाम पर सुप्रीम कोर्ट के साथ फ्रॉड किया गया है. हाईकोर्ट की टिप्पणियां छिपाई गईं. गुजरात सरकार को माफी देने का भी अधिकार नहीं था. यह अधिकार सिर्फ महाराष्ट्र सरकार के पास था. भले घटना गुजरात में हुई, लेकिन इस मामले में पूरी सुनवाई महाराष्ट्र में हुई है.
सोमवार, 8 जनवरी 2023 को सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस उज्जल भुइयां की बेंच ने इस मामले में फैसला सुनाया है. बेंच ने लगातार 11 दिन तक सुनवाई की थी और बीते साल 12 अक्टूबर को मामले में फैसला सुरक्षित रख लिया था. सुनवाई के दौरान केंद्र और गुजरात सरकार ने दोषियों की सजा माफ करने से जुड़े ओरिजिनल रिकॉर्ड पेश किए और अपने अपने तर्क रखे थे. गुजरात सरकार ने दोषियों की सजा माफ करने के फैसले को सही ठहराया था. कई दलीलें और पिछले फैसलों का हवाला दिया था. लेकिन उम्रकैद की सजा में समय से पहले दोषियों की रिहाई पर सुप्रीम कोर्ट ने सवाल उठाए थे. कोर्ट का कहना था कि ये साफ होना चाहिए कि दोषी कैसे माफी के योग्य पाए गए.
क्या है बिलकिस बानो रेप केस?
27 फ़रवरी 2002 को ‘कारसेवकों’ से भरी साबरमती एक्सप्रेस के कुछ डिब्बों में गोधरा के पास आग लगा दी गई थी. इसमें 59 कारसेवकों की मौत हो गई थी. इसके गुजरात में दंगे भड़क उठे थे. गुजरात में वर्ष 2002 में जब ये दंगा हुआ उस समय वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे. दंगाइयों के हमले से बचने के लिए पांच महीने की गर्भवती बिलकिस बानो अपनी साढ़े तीन साल की बेटी और 15 दूसरे लोगों के साथ गांव से भाग गई थीं.
तीन मार्च, 2002 को बिलकिस का परिवार छप्परवाड़ गांव पहुंचा और खेतों मे छिप गया. इस मामले में दायर चार्जशीट के मुताबिक़ 12 लोगों समेत 20-30 लोगों ने लाठियों और जंजीरों से बिलकिस और उसके परिवार के लोगों पर हमला किया. बिलकिस और चार महिलाओं को पहले मारा गया और फिर उनके साथ रेप किया गया. इनमें बिलकिस की मां भी शामिल थीं. इस हमले में रंधिकपुर के 17 मुसलमानों में से 7 मारे गए. ये सभी बिलकिस के परिवार के सदस्य थे. इनमें बिलकिस की बेटी भी शामिल थीं.
गुजरात सरकार ने 2022 में स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर सभी 11 दोषियों को गुजरात सरकार की माफी नीति के तहत रिहाई कर दी गई. जसवंत नाई, गोविंद नाई, शैलेश भट्ट, राधेश्याम शाह, विपिन चंद्र जोशी, केशरभाई वोहानिया, प्रदीप मोढ़वाडिया, बाकाभाई वोहानिया, राजूभाई सोनी, मितेश भट्ट और रमेश चांदना को गोधरा उप कारागर से रिहा कर दिया गया, रिहाई के दिन दोषियों का स्वागत फूल माला और मिठाई के साथ किया गया जिस पर देश में विवाद छिड़ गया. इसे लेकर जगह जगह प्रदर्शन हुए.
पुलिस ने केस को खारिज कर दिया था:
जब पुलिस ने इसकी जांच शुरू की तो उसने सबूतों के अभाव में केस ख़ारिज कर दिया. फिर ये मामला मानवाधिकार आयोग के पास गया. सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर हुई. देश की सर्वोच्च अदालत ने सीबीआई से नए सिरे से जांच का आदेश दिया. सीबीआई चार्ज़शीट में 18 लोगों को दोषी पाया गया. इनमें 05 पुलिसकर्मी समेत दो डॉक्टर भी थे. पुलिस और डॉक्टर पर सबूतों से छेड़छाड़ का आरोप लगा.
सीबीआई ने कहा कि मारे गए लोगों का पोस्टमॉर्टम ठीक ढंग से नहीं किया गया ताकि अभियुक्तों को बचाया जा सके. सीबीआई ने केस हाथ में लेने के बाद शवों को क़ब्रों से निकालने का आदेश दिया. सीबीआई ने कहा कि पोस्टमॉर्टम के बाद शवों के सिर अलग कर दिए गए थे ताकि उनकी पहचान न हो सके.
सालों जद्दोजहद के बाद दोषियों को आजीवन कारावास की सजा हुई. मुंबई में सीबीआई की एक विशेष अदालत ने इस मामले में 2008 में 11 दोषियों को उम्र क़ैद की सज़ा सुनाई थी. फिर बॉम्बे हाई कोर्ट ने भी इस सज़ा पर मुहर लगाई.
बार-बार जान से मारने की धमकियां मिलीं:
बिलकिस बानो को कोर्ट में सुनवाई और सीबीआई जांच के दौरान बार बार जान से मारने की धमकियां मिलीं. उसने दो साल में 20 बार घर बदले.उसने सुप्रीम कोर्ट से अपना केस गुजरात से बाहर किसी दूसरे राज्य में शिफ़्ट करने की अपील की. मामला मुंबई कोर्ट भेज दिया गया. सीबीआई की विशेष अदालत ने जनवरी 2008 में 11 लोगों को दोषी क़रार दिया. 07 को सबूतों के अभाव में छोड़ दिया गया.