सुप्रीम कोर्ट ने इलेक्टोरल बॉन्ड को असंवैधानिक बताते हुए किया रद्द

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supreme court heard the case of CBI director alok verma -key judgement of the alok verma petition-सीबीआई मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सुनाया अहम् फैसला | अलोक वर्मा के याचिका पर सुनवाई - इंडी न्यूज़ | IndiNews

सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रहित और लोकतंत्र के हित में आज एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया, सुप्रीम कोर्ट ने इलेक्टोरल बॉन्ड को असंवैधानिक बताते हुए किया रद्द यही नहीं, चुनावी बॉन्ड योजना लाने के लिए मोदी सरकार द्वारा जन प्रतिनिधित्व अधिनियम और आयकर कानूनों सहित विभिन्न कानूनों में किए गए संशोधनों को भी अवैध ठहरा दिया. सर्वोच्च अदालत का ये फ़ैसला मोदी सरकार के लिए बहुत बड़ा झटका है. इस मामले की सुनवाई भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने किया. इसमें सीजेआई के साथ जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा शामिल हैं. संविधान पीठ ने पिछले साल 31 अक्टूबर से 2 नवंबर तक पक्ष और विपक्ष दोनों ही ओर से दी गई दलीलों को सुना था. तीन दिन की सुनवाई के बाद कोर्ट ने 2 नवंबर को अपना फैसला सुरक्षित रखा था जिसे आज सार्वजनिक किया.

इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम को असंवैधानिक करार देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने पिछले पांच सालों के चंदे का हिसाब-किताब भी मांग लिया है. अब निर्वाचन को बताना होगा कि पिछले पांच साल में किस पार्टी को किसने कितना चंदा दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया है कि स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (SBI) से पूरी जानकारी जुटाकर इसे अपनी वेबसाइट पर सार्वजनिक करे.

सुप्रीम कोर्ट के फैसले में कहा कि इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम में गोपनीय का प्रावधान संविधान के अनुच्छेद 19(1) के तहत RTI कानून का उल्लंघन करता है. अब शीर्ष अदालत के फैसले के बाद एक बार फिर से आम जनता ये जान सकती है कि किसने, किस पार्टी की फंडिंग की है. सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि राजनीतिक पार्टियों को आर्थिक मदद से उसके बदले में कुछ और प्रबंध करने की व्यवस्था को बढ़ावा मिल सकता है. जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि काले धन पर काबू पाने का एकमात्र तरीक़ा इलेक्टोरल बॉन्ड नहीं हो सकता है. इसके और भी कई विकल्प हैं.

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में आशंका जताई कि राजनीतिक दलों की फंडिंग करने वालों की पहचान गुप्त रहेगी तो इससे रिश्वतखोरी का मामला बन सकता है. पीठ में शामिल जज जस्टिस गवई ने कहा कि पिछले दरवाजे से रिश्वत को कानूनी जामा पहनाने की अनुमति नहीं दी जा सकती है. उन्होंने कहा कि इस स्कीम को सत्ताधारी दल को फंडिंग के बदले में अनुचित लाभ लेने का जरिया बनने की अनुमति नहीं दी जा सकती है.

इलेक्टोरल बॉन्ड या चुनावी चंदे पर कांग्रेस नेता जया ठाकुर, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी और एनजीओ एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) समेत चार लोगों ने याचिकाएं दाखिल की हैं जिसपर सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने आज अपना फैसला सुनाया.

2017-2018 में मोदी सरकार ने इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम क़ानून बनाया जिसके तहत बेहद गोपनीय तरीके से राजनीतिक दलों को चंदा दिया जा सकता था और इसकी जानकारी आम जनता RTI के तहत भी प्राप्त नहीं कर सकते थे.

प्रशांत भूषण ने कहा, “सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बॉन्ड मामले में एक महत्वपूर्ण फ़ैसला सुनाया, जिसका हमारे लोकतंत्र पर लंबा असर होगा. कोर्ट ने बॉण्ड स्कीम को ख़ारिज कर दिया है. इस स्कीम में ये नहीं पता लगता था कि किसने कितने रुपए के बॉन्ड ख़रीदे और किसे दिए. सर्वोच्च न्यायालय ने इसे सूचना के अधिकार का उल्लंघन माना है. इसे लेकर जो संशोधन किया गया था, जिसके तहत कोई कंपनी, किसी भी राजनीतिक दल को कितना भी पैसा दे सकती हैं, कोर्ट ने वो भी रद्द कर दिया है.”

प्रशांत भूषण ने आगे कहा, “कोर्ट ने कहा कि ये चुनावी लोकतंत्र के ख़िलाफ़ है, क्योंकि ये बड़ी कंपनियों को लेवल प्लेइंग फ़ील्ड ख़त्म करने का मौक़ा देती है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि जो भी पैसा इस स्कीम के तहत जमा किया गया है, वो भारतीय स्टेट बैंक चुनाव आयोग को दे और आयोग की तरफ़ से इसकी जानकारी आम लोगों को मुहैया कराई जाएगी.”

इलेक्टोरल बॉन्ड के खिलाफ दायर याचिकाओं में कहा गया था कि यह सूचना के अधिकार का उल्लंघन है. इसके साथ ही यह भी कहा गया था कि कॉर्पोरेट फंडिंग स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव के खिलाफ है.