देश के सबसे बरी जाँच एजेंसी CBI (सीबीआई-केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो) अभी अपने विभाग के अंदर आरोपी CBI ऑफिसर पर आरोप है तिन करोड़ घुस लेने का जिसके बाद CBI ने ही राकेश अस्थाना के ख़िलाफ़ एक FIR दायर कर दिया है, हालांकि उन्होंने अपनी गिरफ्तारी के खिलाफ दिल्ली हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है. अब सबसे बड़ी सवाल है कि ऐसे में हमारे और आपके जैसे आम आदमी कैसे किसी सरकारी एजेंसियों पर भरोसा करे, क्या ऐसे में इस तरह के अधिकारियों द्वारा जांच किए गए मामलों पर सवाल नहीं उठता? क्या सरकार या कोर्ट ऐसे अधिकारीयों द्वारा जांच किए गए विवादित मामलों का फिर से जांच कराएगी? क्या जनता यकीन करेगी इसने बिना घुस लिए या बिना किसी खास मकसद या खास लोगों को फ़ायदा नहीं पहुचाया होगा.
सवाल बहुत से हैं लेकिन जवाब हमें और आपको खुद ही ढूँढना होगा क्योंकि सरकार पर ना अब यकीन रहा और ना ही किसी प्रकार का उम्मीद| सरकारें कोई भी हो किसी की या किसी भी पार्टी की हो आम आदमी को कोई खास फर्क नहीं पड़ता, वादे जुमलों में बदल जाते हैं, देखते देखते साल और फिर पांच साल पूरे हो जाते हैं और दौर आता है फिर से नए वादे नए सपने दिखाने का नया जुमला गढ़ने का, यकीन मानिए यही होता रहेगा यहाँ जब तक लोग नेताओं के फेन बने रहेंगे, और जब तक अपने भले का अपने काम का सवाल नहीं करेंगे, और जब तक हम और आप कोशिश नहीं करेंगे जवाब ढूंढने का| नेता, सरकार, पार्टी एक स्टेटमेंट दे देगी और प्रेस कॉन्फ्रेंस कर देगी हम मान लेंगे हमारे पार्टी का नेता बोल रहा है तो सही बोल रहा होगा| अब आप समझिए ऐसे कितने मुद्दे होंगे जिनके लिए लोगों ने आंदोलन तक किये ताकि CBI जांच हो सके और सरकार ने कहा ठीक है लो कर देते हैं CBI जांच जनता खुश की भाई अब तो इंसाफ हो ही जाएगा और यकीनन बहुत से मामले में बहुत अच्छा और सराहनीय रहा सीबीआई का काम लेकिन क्या एक भी ऐसे राजनीतिक मामले हैं जिसमे उचित और सही समय पर करवायी की गई हो|
सभी सरकार पर CBI को अपने फायदे के लिए इस्तेमाल करने का आरोप लगा है और सबको पता है वो सच भी है जनता को पता है, सत्ता पक्ष को पता है, विपक्ष को पता लेकिन क्या हमारे पास कोई ऑप्शन है? सायद नहीं क्योंकि कोर्ट के पास वक्त और साधन नहीं है और सरकार तो कहती है सब ठीक है.
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अभी जब पहली बार ऐसा मुद्दा सामने आया है जब देश के सबसे बरी जाँच एजेंसी के दुसरे सबसे बरे पद पर बैठे अधिकारी पर उन्ही के विभाग ने ना सिर्फ घूसखोरी का आरोप लगाया है बल्कि गिरफ़्तारी की भी हालत है तो ऐसा लग रहा जैसे ये तो कभी ना कभी होना ही था. वक्तिगत तौर पर मुझे कोई आश्चर्य नहीं हो रहा बल्कि ये बस एक शुरुआत है और हो सकता है जिस प्रकार #MeToo के तहत एक के बाद एक आरोप और घटनाएँ सामने आने लगे हैं वैसे ही अब सीबीआई और अन्य सकरारी विभागों का असलियत बाहर आना शुरू हो जाये|
दरअसल, CBI डायरेक्टर आलोक वर्मा (Alok Verma) और CBI के स्पेशल डायरेक्टर राकेश अस्थाना (Rakesh Asthana) के बीच पिछले काफी समय से चल रही ‘नूराकुश्ती’ तब खुलकर सामने आई सीबीआई ने अपने ही स्पेशल डायरेक्टर राकेश अस्थाना पर केस दर्ज किया। एफआईआर में उन पर मांस कारोबारी मोइन कुरैशी से 3 करोड़ रुपये की रिश्वत लेने का आरोप लगाया गया है।
NDTV में छपे लेख के अनुसार “सरकार को लिखे अपने पत्र में सीबीआई चीफ आलोक वर्मा ने राकेश अस्थाना को भ्रष्ट आचरण और नैतिन पतन का स्त्रोत बताते हुए इसे जांच का विषय बताया है. हालांकि सीबीआई ने इस मामले में कमेंट करने से इन्कार कर दिया.”
राकेश अस्थाना ने अपने खिलाफ एफआइआर दर्ज होने के बाद सीबीआई चीफ पर पलटवार करते हुए उन पर भी रिश्वतखोरी का आरोप जड़ दिया. इस मामले में सीबीआई ने अपने चीफ का पक्ष लिया है और अस्थाना के आरोपों को झूठा करार दिया है. अब सोचने वाली बात है कहीं दोनों अधिकारी तो सच नहीं बोल रहे! ये अपने आप में जाँच का विषय है लेकिन जाँच करेगा कौन CBI ? अगर CBI अपने दो सबसे बारे अधिकारी पर जाँच करती है फिर तो भगवन भला करे इस मामले का| जब दो सबसे बारे अधिकारीयों पर घूसखोरी और कामचोरी का आरोप है और दोनों खुले में एक दुसरे पर किचर उछाल रहे तो अब किसपर भरोसा किया जाये.
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उधर अमर उजाला में छपे एक एक्सक्लूसिव खबर के अनुसार, “सीबीआई के नंबर 2 माने जाने वाले विशेष निदेशक राकेश अस्थाना विवादास्पद मीट व्यापारी मोईन कुरैशी से जुड़े मामलों के तीसरे शिकार हैं। इससे पहले सीबीआई के दो शीर्षस्थ अधिकारी पूर्व निदेशक रंजीत सिन्हा और एपी सिंह कुरैशी से नजदीकी और उसके साथ पैसे के लेनदेन के मामले में कानूनी कार्रवाई झेल रहे हैं। कुरैशी के खिलाफ पीएमएलए की जांच कर रहे प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने अपनी चार्जशीट में लिखा है कि कुरैशी रंजीत सिन्हा और एपी सिंह के लिए आरोपियों से पैसों की उगाही किया करता था। एपी सिंह रंजीत सिन्हा से पहले सीबीआई निदेशक थे। कुरैशी जैसे दलाल की शीर्ष अधिकारियों से सांठगांठ सीबीआई के इमेज पर गंभीर धब्बा माना जा रहा है।”
कही ऐसे तो नहीं है की इन अधिकारीयों के बिच हफ्ता में बटवारा को लेके अनबन हुई हो? अमर उजाला के खबर को माने तो ये कोई नई बात नहीं है मतलब कुछ तो हो रहा है सीबीआई में अभी नहीं बहुत पहले से. क्या यही कारन नहीं हो सकता की आजतक किसी भी राजनीतिक मामले में समय से या किसी प्रकार की उचित करवाई नहीं हुए और कई बार तो सत्ता में बैठे पार्टी के अनुसार नेताओं या राजनीतिक पार्टियों से जुड़े मामले के जांच में रफ़्तार आती है|
अब पहले जानते हैं राकेश अस्थाना, उनके कार्यकाल, और उनके द्वारा जाँच किये गए कुछ प्रमुख मामलों के बारे में.
राकेश अस्थाना 1984 बैच के गुजरात काडर के आईपीएस अधिकारी हैं जो मूलतः झारखंड के रांची शहर से आते हैं| जेएनयू से पढ़ाई करने वाले अस्थाना को नरेंद्र मोदी और अमित शाह के क़रीबी अधिकारियों में से एक माना जाता है. 2014 में जब केंद्र में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा की सरकार बनी तो राकेश अस्थाना को 20 अन्य आला अफ़सरों के साथ गुजरात से दिल्ली बुलाया गया. इन अधिकारियों की में अस्थाना के अलावा प्रमुख हैं हंसमुख अधिया जो वित्त मंत्रालय में सचिव हैं, रीता टोटिया जो वाणिज्य सचिव हैं, और तपन राय कॉरपोरेट मामलों के सचिव हैं.
अहमदाबाद, सूरत और वडोदरा में उच्च पदों पर तैनात रह चुके राकेश अस्थाना ने कुछ ऐसे मामलों की जाँच की है राजनीतिक गणित के हिसाब से अत्यंत महत्वपूर्ण है. ये मामले हैं गोधरा कांड, अहमदाबाद बम धमाका, आसाराम बापू के ख़िलाफ़ जांच, चारा घोटाला|
इतने सरे अहम मामलों के जाँच के बाद भी राकेश अस्थाना चर्चा में तब आये जा उन्होंने बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू यादव से लगातार छह घंटे तक पूछताछ करते रहे|
ध्यान देने वाली बात ये है भी है की राकेश अस्थाना उस दौर में गुजरात के प्रमुख पदों पर रहे हैं जब वहां के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह हुआ करते थे| फ़िलहाल वो वर्तमान मोदी सरकार के द्वारा केंद्र में सीबीआई के स्पेशल डायरेक्टर के रूप में नियुक्त किये गए हैं.
ख़बरों के मुताबिक़, अस्थाना इस समय विजय माल्या और लालू यादव परिवार के ख़िलाफ़ मामलों की जांच कर रहे हैं.
राकेश अस्थाना का डायरेक्टर बनान भी कोई स्वाभाविक नियुक्ति नहीं था, अमूमन वरिष्ठता के क्रम में नंबर दो पर तैनात अधिकारी को निदेशक के रूप में नियुक्त किया जाता है लेकिन उस समय वरिष्ठता के क्रम में नंबर दो पर तैनात अधिकारी आरके दत्ता को पूर्व निदेशक रंजीत सिन्हा का कार्यकाल पूरा होने से ठीक दो दिन पहले गृह मंत्रालय भेज दिया गया, ऐसा नहीं होने पर आरके दत्ता स्वाभाविक रूप से सीबीआई के निदेशक बन जाते. इतना ही नहीं मोदी सरकार के इस फैसले के बाद करीब एक महिना तक सीबीआई बिना किसी निदेशक के काम करती रही|
ये पहली बार नहीं है जब राकेश अस्थाना पर घूसखोरी का आरोप लगा हो इससे पहले 2011 में स्टर्लिंग बॉयोटेक नामक कंपनी के यहां छापेमारी के दौरान सीबीआई को एक डायरी मिली थी, जिसमें कई लोगों के नाम और उनके सामने रकम का ब्यौरा था. कथित तौर पर उसमें राकेश अस्थाना का नाम होने की बात कही गई और करीब तीन करोड़ रुपये धनराशि का जिक्र मिला था. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक इस डायरी के आधार पर बाद में सीबीआई ने कंपनी के प्रमोटर्स के खिलाफ केस दायर किए थे, हालांकि आईपीएस राकेश अस्थाना का नाम एफआईआर में नहीं था.
इस मामले पर मुख्या विपक्षी पार्टी कांग्रेस के अध्यक्ष राहुल गाँधी ने ट्वीट कर राकेश अस्थाना को मोदी के चहेते अधिकारी बताया|
The PM’s blue-eyed boy, Gujarat cadre officer, of Godra SIT fame, infiltrated as No. 2 into the CBI, has now been caught taking bribes. Under this PM, the CBI is a weapon of political vendetta. An institution in terminal decline that’s at war with itself. https://t.co/Z8kx41kVxX
— Rahul Gandhi (@RahulGandhi) October 22, 2018
अब देखना है सीबीआई या मोदी सरकार इस मामले में क्या निर्णय लेती है और इस हाई प्रोफाइल घूसखोरी कांड और आरोपों का अंत क्या होता है. क्या भाजपा और मोदी सरकार अपने चहेते अधकारी पर कड़ी करवाई करती है या बससब ठीक है से कम चलती है| जाँच के बाद अगर आरोप सही साबित होती है तो कड़ी करवाई होनी चाहिए और अगर आरोप गलत है तो देश के प्रमुख विभाग में ऐसी अनुसनहीनता के लिए दोनों अधिकारयों पर करवाई होनी चाहिए|
व्यंग
FIR कॉपी के कुछ भाग निचे है|
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