देश के वर्तमान भाजपा सरकार ने सीबीआई में दो सबसे प्रमुख अधिकारीयों के बिच छिड़े जंग में हस्तक्षेप करते हुए रातों रात कई अधिकारीयों का किया तबादला और CBI में नंबर एक और दो पर काम कर रहे अधिकारी क्रमशः अलोक कुमार वर्मा और राकेश अस्थाना को छुट्टी पर जाने का आदेश दे दिया है. ये अपने आप में सीबीआई के इतिहास का सबसे अलग घटना है जब सीबीआई के हिं दो अधिकारीयों के बिच ऐसे खुले में जंग छिड़ी हो और सीबीआई के ही लोग सीबीआई के कार्यलय में छापे मार रहे हों.
हमारे पिछले पोस्ट में हमने “CBI में घूसखोरी कांड आरोपी राकेश अस्थाना का मोदी कनेक्शन” के बारे में लिखा था, मोदी सरकार ने सीबीआई के निदेशक अलोक वर्मा को हटा दिया है वो भी ऐसे हालात में जब सीबीआई के नंबर दो राकेश अस्थाना जिसके नरेंद्र मोदी और अमित साह के करीबी होने के चर्चे जोड़ो पर हैं और अस्थाना पर खुद सीबीआई निदेशक ने घूसखोरी जैसे संगीन आरोप लगाये हैं और कहा जाता है की राकेश वर्मा अपनी निगरानी में इस मामले और अस्थाना के खिलाफ कुछ और मामले की जाँच भी कर रहे थे.
सीबीआई निदेशक अलोक वर्मा स्टर्लिंग बायोटेक के 5,000 करोड़ रुपये से ऊपर के लोन की हेराफेरी की भी जाँच कर रहे थे जिसमे कथित तौर पर राकेश अस्थाना को कंपनी द्वारा 3.88 करोड़ रुपये रिश्वत के तौर पर दिया गया था, जिसके बाद राकेश अस्थाना ने भी अलोक वर्मा पर पलटवार करते हुए कैबिनेट सचिव को अगस्त में पत्र लिखा कि आलोक वर्मा उनकी जांच में हस्तक्षेप कर रहे हैं और आईआरसीटीसी घोटाला मामले में लालू प्रसाद यादव के खिलाफ छापेमारी रोकने की कोशिश की.
1997 के पहले सीबीआई डायरेक्टर के कार्यकाल का कोई निर्धारित समय नहीं था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने “विनीत नरेन vs भारत सरकार” की सुनवाई के दौरान सीबीआई के निदेशक के कार्यकाल को दो वर्षों के लिए निर्धारित कर दिया था ताकि सरकार सीबीआई द्वारा चल रही जाँच को प्रभावित ना कर सके और सीबीआई को अपने काम को करने के उचित आज़ादी मिले. सुप्रीम कोर्ट ने आगे अपने फैसले मैं कहा कोई असाधारण हालात होने पर सीबीआई के निदेशक को सरकार हटा सकती है लेकिन उसके लिए सीबीआई निदेशक के चयन समिति की मंजूरी जरुरी होगी, इस चयन समिति में प्रधानमंत्री, मुख्य न्यायाधीश, और विपक्ष के नेता होते हैं| अब ये भाजपा और कांग्रेस ही बता सकती है की वर्तमान सीबीआई के निदेशक को छुट्टी पर भेजने के पहले समिति की मंजूरी ली गयी थी या नहीं.
अलोक वर्मा ने सरकार के इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दिया है जिसकी सुनवाई शुक्रवार की होगी| उधर राकेश अस्थाना जो अपनी गिरफ़्तारी के खिलाफ दिल्ली हाई कोर्ट गए थे उन्हें कोर्ट से 29 अक्टूबर तक की राहत दी गयी है, इसका मतलब फ़िलहाल राकेश अस्थाना को जेल नहीं जाना परेगा.
अब देखन है की अलोक वर्मा द्वारा दाखिल सरकार के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका की सुनवाई में शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट क्या फैसला सुनती है|
सीबीआई के अधिकारिक वेबसाइट को देखें तो अलोक वर्मा का नाम अभी भी निदेशक के तौर पर है हालाकिं सीबीआई ने एक छोटी से प्रेस विज्ञप्ति जरुर डाली है जिसके अनुसार श्री एम नागेश्वर राव, IPS(OR-1986) तत्काल सीबीआई निदेशक के तौर पर काम करेंगे.
एम नागेश्वर राव ने कार्यभार सम्हालते ही रातों रात सीबीआई के अंदर कई फेरबदल किया, राकेश अस्थाना पर लगे आरोपों की जाँच कर रहे सभी अधिकारीयों का तबादला कर दिया है. सीबीआई के संयुक्त निदेशक अरुन कुमार शर्मा, ए. साई मनोहर, वी मुरुगेसन और डीआईजी अमित कुमार, डीआईजी मनीष कुमार सिन्हा, डीआईजी तरुन गौबा, डीआईजी जसबीर सिंह, डीआईजी अनीष प्रसाद, डीआईजी केआरचौरसिया, एओबी राम गोपाल और एसपी सतीश डागर का तबादला कर दिया गया. सीबीआई के डिप्टी एसपी एके बस्सी का अंडमान व निकोबार के पोर्ट ब्लेयर में तबादला कर दिया गया है. वहीं एडिशनल एसपी एसएस गम का तबादला कर सीबीआई जबलपुर भेज दिया गया है.
वहीँ विपक्षी पार्टी के नेतावों ने सीबीआई के डिप्टी एसपी एके बस्सी के तबादले को मोदी सरकार और उसके खिलाफ बोलने के लिए काला पानी की सजा बताया.
पुरे मामले ने निश्चित तौर पर विपक्षी पार्टियों और नेताओं को एक बना बनाया मौका दे दिया है सरकार की आलोचना और सरकार के कम काज पर ऊँगली उठाने का. विपक्षी हीं नहीं भाजपा और भाजपा के पूर्व नेतावों के तरफ से भी इस मामले में आवाज़ उठनी शुरू हो गई है और सरकार पर एक बार फिर से अपने चहेते अधिकारी को बचाने का आरोप लग रहा है जिसपर घूसखोरी का आरोप है और गिरफ़्तारी की तलवार लटक रही है.
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