बिहार में दिमाग़ी बुखार (चमकी बुखार) से त्राहिमाम की स्थिति बन गई है, अब तक क़रीब 100 से अधिक बच्चों की मौत हो चुकी है, और दुःख की बात है की दिन ब दिन बढ़ते इस विचलित कर देने वाले आँकड़े के बाद भी स्वास्थ्य विभाग और सरकार हरकत में नहीं दिख रही है. मीडिया रिपोर्टों में मुज़फ़्फ़रपुर की बदहाल व्यवस्था की तस्वीर पेश की जा रही है जो शायद आपने भी देखा है, बिहार में बीमारी से अधिक जानें बीमार और बदहाल स्वास्थ्य व्यवस्था से जा रही है.
राज्य में विकास की बहार का राग अलापने वाले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के 15 साल के शासन को इस घटना ने सही आईना दिखाया है. अस्पताल की जमिनी हालात देख कर तो ऐसा लग रहा है की कुछ नहीं बदला है, 15 साल पहले भी कोई उचित स्वास्थ्य व्यवस्था नहीं थी और आज भी नहीं है. हालत ये है राज्य के सबसे बड़े मेडिकल कॉलेज अस्पताल में से एक श्रीकृष्ण मेडिकल कॉलेज व अस्पताल (एसकेएमसीएच) में बीमार बच्चों के लिए बेड तक की वेवस्था नहीं है.
ऐसे हालत में जब हर दिन कई बच्चों की जानें जा रही है फिर भी पीआइसीयू जैसे विभाग में घंटों डॉक्टर दिखाई नहीं देते और जिंदगी और मौत से जूझ रहे बच्चों का इलाज एक दो नर्स के भरोसे चलता है. अस्पताल में ये हालत तब है जब की देश हीं नहीं दुनिया भर की मीडिया इस ख़बर को दिखा रही रही, इससे, साधारण समय में अस्पताल और राज्य की स्वास्थ्य व्यवस्था की क्या स्थिति होती होगी इसका अनुमान लगाना मुश्किल नहीं है.
बच्चों की मौत की ख़बरों को कुछ गिने चुने राष्ट्रीय मीडिया लगातार चला रही है और अस्पतालों का दौरा कर वहाँ के हालात से भी लोगों को अवगत कर रही है जो गोदी मेडिया के इस दौर में एक सराहनीय काम है. लगातार हो रहे बच्चों की मौत की ख़बरें देर से प्रकाश में आई लेकिन राज्य और देश की स्वास्थ्य विभाग का ज़िम्मा जिन नेताओं और मंत्रियों पर है वो शायद इंतज़ार में थे मृत बच्चों की संख्या बढ़ने की तभी 14 दिनों तक ख़बरें चलने के बाद नेताओं और मंत्रियों को हालत का जायजा लेने का ख़याल आया.
स्वास्थ्य विभाग के मंत्रियों ने दौरा तो किया लेकिन चुनाओं के समय हर चुनावी सभा में वोट के लिए गरीबों की भलाई की बात करने वाले इन नेताओं की संवेदना 100 से अधिक गरीब बच्चों की मौत के बाद भी नहीं जागी है, तभी केंद्रीय स्वास्थ्य राज्यमंत्री अश्विनी कुमार चौबे इसे छोटी बात बता रहे हैं और बिहार के स्वास्थ्य मंत्री पांडे जी को लगता है स्वास्थ्य व्यवस्था दुरुस्त है और बच्चों की मौत की संख्या कम है. यही नहीं बिहार के लोगों को AIIMS आकर गंदगी फैलाने का आरोप लगा चुके बिहार से हीं सांसद और केंद्रीय स्वास्थ्य राज्यमंत्री अश्विनी कुमार चौबे अस्पताल दौरे के बाद प्रेस वार्ता के दौरान चैन की नींद लेते दिखे. ये है हमारे देश को चलाने वाले नेताओं और लोगों की भलाई के लिए बने स्वास्थ्य व्यवस्था की हालत.
मुज़फ़्फ़रपुर दौरे के दौरान केंद्रीय स्वास्थ मंत्री हर्षवर्धन ने कहा “हमें अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के साथ मिलकर काम करना चाहिए. प्रभावित क्षेत्रों के सभी बच्चों का टीकाकरण किया जाना चाहिए और लोगों को बीमारी के बारे में जागरूक किया जाना चाहिए.”
हर्षवर्धन ने आग कहा, “मैंने एईएस प्रकोप पर चिकित्सकों व स्वास्थ्य अधिकारियों से चर्चा की है और व्यापक समीक्षा की है और उन्हें निर्देश दिया है कि इस तरह के हालात फिर दोहराए नहीं जाए. मैंने खुद सभी गंभीर रूप से बीमार बच्चों को देखा है, जिनका इलाज चल रहा है. उनके माता-पिता से मुलाकात की है और उनके समस्याओं पर चर्चा की है.”
वहीं केंद्रीय स्वास्थ मंत्री हर्षवर्धन के दौरे के दौरान उनके सामने भी अस्पताल में भर्ती एक बच्चे ने दम तोर दिया, ये पहली घटना नहीं है जब बिहार में इस बीमारी से जानें गयी है. चमकी बुखार हर साल गर्मियों के मौसम में खासकर बिहार के मुजफ्फरपुर में दस्तक देती है, इस बुखार से 2014 में 355 बच्चों ने अपनी जिंदगी खो दी थी, 2015 में 225, 2016 में 102, 2017 में 54 और 2018 में 33 बच्चों की जानें गई थी.
पिछले 5 साल की बात करें तो अब तक 870 बच्चों की मौत हुई है फिर भी केंद्र और राज्य सरकार ने 5 साल बाद भी इलाज का कोई पुख़्ता इंतज़ाम नहीं करवाया, शायद इसलिए क्योंकि इन बच्चों में कोई उनके या उनके किसी साथी नेताओं या अधिकारियों के बच्चे नहीं होंगे, ये सभी ग़रीब परिवारों के बच्चे हैं जिनके पास सरकारी अस्पताल के अलावा कोई और रास्ता नहीं है. ये वही ग़रीब परिवार हैं जिनकी बात कर और जिनके दम पर नेता AC गाड़ी में घूमते हैं विदेश दौरे करते हैं लेकिन पटना से कुछ 70KM दूर चल रहे इस मौत के मंजर का 5 साल बाद भी कुछ नहीं हो सका है.