लोकसभा चुनाव 2019 खत्म हो चुका है और कल इसका परिणाम भी आ जाएगा. कल ये फैसला होगा की भारत के अगले प्रधानमंत्री के रूप में देश की जनता ने किसे चुना है. परंतु, क्या ये फैसला सिर्फ जनता का होने वाला है या चुनाव आयोग कि भी भूमिका होनेवाली है? कम से कम देश की विपक्षी पार्टियों के आरोपों से तो ऐसा हीं लग रहा है की ना सिर्फ जनता का वोट बल्कि चुनाव आयोग की भी अहम भूमिका होनेवाली है नतीजे में. बीते 19 तारीख़ को आख़री दौर का मतदान हुआ जिसके कुछ देर बाद शुरू हो गया टीवी चैनलों पर आंकरों और संभावनावों का खेल एग्ज़िट पोल (Exit Poll).
एग्ज़िट पोल (Exit Poll) में सामने आए रिज़ल्ट पर नज़र डालें तो लगभग सभी एग्ज़िट पोल में राजग यानी भाजपा गठबंधन बड़ी बढ़त बनती दिख रही है जो विपक्षी पार्टियों के लिए परेशानी वाली बात है. हालाँकि सभी जानते हैं Exit Poll ज़्यादातर सही नहीं होता, अगर आप विपक्षी पार्टियों के नेताओं को सुनेंगे तो वे ऐसे कई उदाहरण गिनाते दिख जाएँगे जब Exit Poll पूरी तरह ग़लत और उलट रहा ख़ास कर तब जब एग्ज़िट पोल में भाजपा की भारी बढ़त दिखायी जा रही हो.
चुनाव के पहले से चुनाव आयोग के निष्पक्षता पर सवाल उठता रहा है और चुनाव आयोग ने कई फ़ैसले ऐसे किए जो किसी भी तर्क से उचित नहीं दिख रहा था ख़ासकर पीएम मोदी और अमित साह को सभी मामलों में क्लीनचीट देने का. बता दें की एक नहीं बल्कि कुल पाँच मामलों में मोदी और अमित साह को चुनाव आयोग द्वारा क्लीनचीट दिया गया. इसी बीच चुनाव आयोग के एक बड़े अधिकारी अशोक लवासा ने इस मामले को लेकर चुनाव आयोग के कार्यशैली पर हीं सवाल उठा दिया.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह को चुनाव आयोग के द्वारा दिए गए पांच क्लीनचिट पर बयान देने वाले चुनाव आयुक्त अशोक लवासा ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा आचार संहिता के उल्लंघन के मामलों पर कड़ा रुख अपनाए जाने के बाद उन्होंने ‘पारदर्शी और समय सीमा’ के अंदर इन मामलों के निपटारे की मांग की थी.
जिसके बाद अशोक लवासा ने अपने सुझावों पर कोई कार्रवाई नहीं होने और आयोग के अंतिम आदेशों में खुद के पक्ष को शामिल नहीं किए जाने की वजह से आचार संहिता के उल्लंघन पर हुई बैठकों में भाग लेने से मना कर दिया था. लवासा ने कहा ‘अगर चुनाव आयोग का निर्णय बहुमत के विचार के आधार पर लिया जाता है और आप अल्पमत के विचारों को फाइनल आदेश में शामिल नहीं करते हैं, तो अल्पमत के विचार का मतलब ही क्या है. सभी बहु-सदस्यीय और वैधानिक निकायों के पास कार्य करने की एक स्थापित प्रक्रिया है. चुनाव आयोग एक संवैधानिक निकाय है और उसे इस प्रक्रिया का पालन करना चाहिए.’
लवासा के बयानों के बाद विपक्षी पार्टियों को और भी एक मौक़ा मिल गया मोदी सरकार और चुनाव आयोग पर निशाना साधने का. यही नहीं तमाम विपक्षी पार्टियों द्वारा लगातार चुनाव आयोग पर यह भी आरोप EVM मशीन बदनले जैसे तमाम आरोप भी लगाए जा रहे हैं हालाँकि इन आरोपों का चुनाव आयोग के तरफ़ से ज़रूरी जवाब दिया गया है जिससे विपक्ष फ़िलहाल सहमत नहीं दिख रहा.
देशभर के स्ट्रोंग रूम्स के आसपास ईवीएम की बरामदगी हो रही है। ट्रकों और निजी वाहनों में ईवीएम पकड़ी जा रही है।
ये कहाँ से आ रही है,कहाँ जा रही है? कब,क्यों,कौन और किसलिए इन्हें ले जा रहा है? क्या यह पूर्व निर्धारित प्रक्रिया का हिस्सा है?चुनाव आयोग को अतिशीघ्र स्पष्ट करना चाहिए।
— Rabri Devi (@RabriDeviRJD) May 21, 2019
इसी बीच चुनाव आयोग ने विपक्षी दलों को झटका देते हुए पहले वीवीपीएटी की पर्चियों के ईवीएम से मिलान की मांग को खारिज कर दिया है. ईवीएम-वीवीपीएटी के मुद्दे पर चुनाव आयोग ने अपनी बड़ी बैठकर कर इस संबंध में फैसला लिया. विपक्षी दलों की मांग है कि अगर किसी एक बूथ पर भी वीवीपीएटी पर्चियों का मिलान सही नहीं पाया जाता तो संबंधित विधानसभा क्षेत्र में सभी मतदान केंद्रों की वीवीपीएटी पर्चियों की गिनती की जाए और इसका ईवीएम रिजल्ट्स से मिलान किया जाए.
Election Commission rejects demands of opposition parties’ regarding VVPAT. More details awaited pic.twitter.com/zyxETDjWOE
— ANI (@ANI) May 22, 2019
कैसे होती है स्ट्रांग रूम में ईवीएम की पहरेदारी?
स्ट्रांग रूम एक पूरी तरह से सील कमरा होता है जहाँ चुनाव होने के बाद मतगणना के लिए EVM मशीन को कड़ी सुरक्षा के साथ रखा जाता है. यहाँ किसी भी गैर-आधिकारिक व्यक्ति का प्रवेश वर्जित होता है. स्ट्रांग रूम और वहाँ रखे ईवीएम मशीन की सुरक्षा को बेहद गंभीर माना जाता है, इसकी सुरक्षा के लिए केंद्रीय अर्ध सैनिक बलों की तैनाती रहती है. केंद्रीय बल स्ट्रांग रूम के भीतर की सुरक्षा देखते हैं जबकि बाहर की सुरक्षा राज्य पुलिस बलों के हाथों में होती है और इसकी सुरक्षा की जिम्मेदारी पूरी तरह से सीधे जिले के डीएम और एसपी के हाथों में होती है.
स्ट्रांग रूम की सीलिंग राजनीतिक पार्टियों के प्रतिनिधि की मौजूदगी में किया जाता है. राजनीतिक पार्टियों के प्रतिनिधि को भी अपनी तरफ से सील लगाने का अधिकार होता है. इन सभी प्रक्रिया के बाद स्ट्रांग रूम की निगरानी के लिए CCTV कैमरे भी लगाए जाते हैं. चुनाव आयोग की सुरक्षा के बाद इन जगहों पर राजनीतिक पार्टियों और उम्मीदवारों के प्रतिनिधि और समर्थक बड़ी संख्या में मैजूद होते हैं.