तेज बहादुर का आरोप: दिल्ली से आदेश आ रहा था, किसी भी तरह इस जवान का नामांकन रद्द किया जाए!

विशाल ददलानी ने अपनी ट्वीटर पर लिखा ‘कौन जानता था कि फेकू फट्टू भी है..छी!’

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election-commission-might-cancel-the-candidature-of-tej-bahadur-yadav-from-banaras-क्या चुनाव अधिकारी सरकार के दबाव में तेज बहादुर यादव पर कर रही कार्रवाई?

तेज बहादुर यादव का इस प्रकार नामांकन रद्द होना ना बस दुर्भाग्यपूर्ण है बल्कि संदेहास्पद भी है. तेज बहादुर जानते थे कि उसने देश के सबसे ताकतवर लोगों को खिलाफ आवाज़ उठाया है और उन्हे इसका अनुभव और अंजाम भी भली भांति मालूम था.

दो साल पहले जब तेज बहादुर ने सैनिकों को मिल रहे खराब खाने को लेकर आवाज़ उठाया था, और ये आवाज़ बस सीमा पर पहरेदारी कर रहे जवानों की भले के लिए नहीं बल्कि सेन में बड़े अधिकारियों और सरकार के खिलाफ भी था.

तेज बहादुर तो काफी समय से फौज में थे और कई बार उन्हे उनके वीरता के लिए पुरस्कृत भी किया गया है, ऐसे में उन्हे ये पता तो होगा कि वो जिन लोगों के खिलाफ आवाज उठा रहे जिन अधिकारियों पर आरोप लगा रहे वो उनके लिए नुकसानदेह होगा लेकिन फिर भी उन्होने आवाज उठाया अपने साथियों के भले के लिए, इस घटना के बाद सिपाही को मिल रहे खाने में सुधार हो ना हो लेकिन तेज बहादुर यादव को अफसरशाही और सरकार के खिलफ आवाज़ उठाने की सजा मिली और उन्हे फौज के नौकरी से निष्कासित कर दिया गया.

बुराई के खिलाफ आवाज़ उठाना और सिस्टम को झकझोरने का जज्बा तेज बहादुर के खून में है, हरियाणा के तेज बहादुर यादव के दादा ईश्वर सिंह ‘फ्रीडम फाइटर (स्वतंत्रता सेनानी)’ थे, वे सुभाष चंद्र बोस के साथ रह चुके थे और उनको ताम्र पत्र मिला था.

जाहिर है कि प्रधानमंत्री मोदी और भाजपा के लिए ऐसे उम्मीदवार के बारे में बयानबाजी और बदजुबानी करना बहुत कठिन होता और इसके अलावा वोट मांगने का कोई अलग तरीका तो नेताओं में अब बचा नहीं. इसलिए गठबंधन से समर्थन मिलते हीं तेज बहादुर के खिलाफ कार्रवाई तेज कर दी गई.

अगर तेज बहादुर द्वारा गलत जानकारी देने के कारण उनका नामांकन रद्द किया गया तो इसमें कोई समस्या नहीं है लेकिन क्यों सिर्फ ऐसे लोगों पर ही कार्रवाई की जाती है जो किसी खास ताकत के खिलाफ आवाज़ उठाते हैं? क्यों नहीं चुनाव आयोग ऐसे सभी लोगों पर कार्रवाई करती है जिसने चुनाव आयोग को गलत जानकारियां दिया हो? चुनाव आयोग के नियम-क़ानून और कार्रवाई क्यों चेहरे और लोगों के राजनीतिक और सामाजिक क़द को देखकर होता है?

यह इस देश, लोकतन्त्र, और चुनावी प्रक्रिया के लिए शर्मनाक है कि बीमारी का बहाना बना जमानत पर रिहा आतंकवादी घटना में संलिप्तता के आरोपी को सत्तारूढ़ पार्टी चुनाव मैदान में उतारती है, यही नहीं अनगिनत महत्वपूर्ण मामलों पर एक शब्द तक नहीं बोलने वाले हमारे देश के प्रधानमंत्री खुद वैसे लोगों का बचाव करते हैं और वहीं देश की सच्ची सेवा करने वाले देश के असली चौकीदार का नामांकन रद्द करने के लिए सिस्टम द्वारा पूरी ताकत झोंक दी जाती है.

पूर्व सैनिक तेज बहादुर यादव ने जिस प्रकार के बातें चुनाव आयोग, मोदी, और सरकार के बारे में कही है उससे तो ऐसा लग रहा कि ये सारी प्रक्रिया सीधे केंद्र सरकार के द्वारा कंट्रोल किया जा रहा था.

तेज बहादुर यादव ने नामांकन रद्द होने के बाद मीडिया से बात करते हुए कहा, मैंने बीएसएफ में रहते हुए उसी बारे में आवाज बुलंद की, जिसे मैंने गलत पाया. मैंने न्याय की उस आवाज को बुलंद करने बनारस आने का फैसला किया था. अगर मेरे नामांकन में कोई समस्या थी तो एक स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में दाखिल करने (मेरे कागजात) के समय उन्होंने मुझे इस बारे में क्यों नहीं बताया.

पूर्व सैनिक ने नामांकन रद्द होने को भाजपा का तानाशाह कदम बताते हुए कहा “मेरे दादा आजाद हिंद फौज के साथ थे, मैं एक किसान का बेटा हूं और एक जवान के रूप में सेवा की… मैं अब चुनाव भी नहीं लड़ सकता. यह तानाशाही है”. उनके वकील राजेश गुप्ता ने कहा, “हम सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाएंगे”

तेज बहादुर ने मीडिया को बताया कि वे सुबह 11 बजे जैसे ही जवाब दाखिल किया उसी के तुरंत बाद चुनाव आयोग से भी क्लियरेंस आ गया. उसके बाद भी हमें साढ़े तीन बजे तक बिठा कर रखा, सात से आठ बार पेपर को फाड़ा गया, दिल्ली से आदेश आ रहा था, किसी भी तरह इस जवान का नामांकन रद्द किया जाए. अब हमें लास्ट में कहा कि जब आप दोनों ने नामांकन किया था तब चुनाव आयोग से परमिशन का लेटर नहीं दिया. NDTV ने तेज बहादुर यादव का पूरा बयान अपने इस पोस्ट में प्रकाशित किया है. हालाँकि ये स्पष्ट नहीं है की तेज बहादुर ने नामांकन रद्द होने के बाद कई बयानों में जिस प्रकार प्रधानमंत्री मोदी, भाजपा और चुनाव आयोग पर तरह तरह के आरोप लगा रहे उसके समर्थन में उनके पास कोई सबूत है या नहीं.

तेज बहादुर के नामांकन में कमी निकालने और नामांकन रद्द करने वाली संस्था चुनाव आयोग हरबारहट और दबाव का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है की चुनाव आयोग तेज़ बहादुर को भेजे नोटिस में कहा गया है…आपको इस नोटिस के माध्यम से सूचित करते हुए निर्देशित किया जाता है कि आप दिनांक 01-05-2109 को प्रातः 11 बजे तक उक्त प्रमाण पत्र पेश करें, ताकि आपके नाम निर्देशन पत्र के संबंध में विधिवत निर्णय लिया जा सके. नोटिस में रिटर्निंग ऑफिसर ने जो तारीख दी है वो 90 साल बाद की है, अब अगर इसे भूल कहा जाए तो ऐसी हीं भूल तेज़ बहादुर यादव से भी हुई थी, अगर तेज बहादुर पर कार्रवाई की जा सकती है और उनका नामांकन रद्द किया जा सकता है तो ऐसी भूल करने वाले चुनाव अधिकारी पर भी कार्रवाई होनी चाहिए.

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तेज बहादुर यादव का नामांकन रद्द होने के बाद देश भर के लोगों सोशल मीडिया में अपनी नाराज़गी ज़ाहिर कर रहे हैं, ज़्यादातर लोगों ने पीएम मोदी और चुनाव आयोग पर तंज कसते हुए अपनी भावना को ट्विटर के माध्यम से साझा किया. मशहूर गायक और संगीतकार विशाल ददलानी ने अपनी ट्वीटर पर लिखा ‘कौन जानता था कि फेकू फट्टू भी है..छी!’.