क्या BJP चुनाव के चंडीगढ़ मॉडल को पुरे देश में लागू करना चाहती है? लोकतंत्र के सबसे बड़े पर्व में कैसे किसी लोकसभा क्षेत्र के लाखों लोगों को अपने मतदान के अधिकार से वंचित रखा जा सकता है?
भाजपा ने सरकार में होने के अपने असीमित ताक़तों का फ़ायदा उठाते हुए पहले तो सूरत में BJP के लोकसभा प्रत्याशी को निर्विरोध चुनाव जीताने के लिए चंडीगढ़ चुनाव मॉडल का इस्तेमाल किया. चंडीगढ़ में मेयर चुनाव के दौरान कैमरे के सामने जो हुआ उसके बाद भी भाजपा ये मान के चल रही है की जनता को कुछ समझ नहीं आ रहा! जनता को सब समझ आता है लेकिन शायद देश की अधिकांश जनता को इस बात से फ़िलहाल कोई फर्क नहीं पर रहा है.
हमारे देश की जनता को समझ में आ रहा कि राजनेता और राजनीतिक पार्टियाँ अपने फ़ायदे के लिए लोकतंत्र को कमजोर कर रही है, और ये षड्यंत्र जाने अनजाने में ही सही लेकिन सभी पार्टियाँ कर रही है, फर्क बस ये है की कोई ज़्यादा है और कोई कम. जिस भी पार्टी या राजनेता को मौका मिला उसने लोकतंत्र के नाम पर ही लोकतंत्र को कमजोर करने का काम किया और जिसे मौका नहीं मिला उसने हमेशा हल्ला मचाया कि लोकतंत्र ख़तरे में और लोकतंत्र को समाप्त किया जा रहा है. ये बात सही है कि जब कांग्रेस सत्ता में थी तब कांग्रेस या उसके बाद भी अन्य सरकारों ने कई ऐसे काम किए जिससे लोकतंत्र और देश के सिस्टम को कमजोर करने का एक रास्ता बना, बात ये भी सच है कि अभी वर्तमान में भाजपा की अगुवाई में मोदी सरकार ने पिछले 10 सालों कई ऐसे काम किए हैं जो देश को बहुत तेज रफ़्तार से एक ऐसी स्थिति के तरफ ले जा रही है जहां चुनाव तो होंगे लेकिन लोकतंत्र नहीं होगा. सत्ता, पावर और राजनीति की इस घटिया खेल में हमेशा नुकसान सिर्फ देश और देश की जनता का होगा.
अभी के दौर में जानबूझकर बेखबर जनता को बस उन्हीं मुद्दों से मतलब है जिसे गोदी मीडिया ध्यान भटकाने के लिए चला रही. हालाँकि अब देश में मीडिया के पास अपने राजनीतिक आकाओं के इशारे पर प्रोपेगेंडा न्यूज़ चलाने के अलावा और कोई काम बचा नहीं है. प्रोपेगेंडा न्यूज़ के बाद मीडिया के पास जो थोड़ा सा वक्त बचता है वो रामदेव और पतंजलि के झूठे प्रचार को दिखाने में चला जाता है. ऐसे में जनता को खुद जागरूक होना होगा और अपने मतलब की खबरों को ढूँढना होगा, नहीं तो इसी तरह उनके अधिकारों को बड़ी तेज़ी से नेताओं और पूँजीपतियों के हाथों नीलम कर दिया जाएगा.
सूरत के बाद अब इंदौर की जनता के साथ भी वही हुआ जो लोकतंत्र में सबसे बड़ा पाप है, भाजपा ने बड़ी चालाकी से कांग्रेस के प्रत्याशी का बम चिकी-चिकी बम कर दिया. यहाँ भाजपा ने वही किया जो अभी पुरे देश में चल रहा है, और अब तो PM मोदी और अमित शाह के कठोर मेहनत के बाद यह BJP का सिग्नेचर मूव बन गया है.
अपने इस सिग्नेचर मूव के तहत BJP अपने विरोधियों पर पहले आरोप लगती है या पुराने किसी मामले को ढूँढ के निकालती है, फिर गोदी मोदिया मीडिया और ED, IT, SBI, पुलिस जैसे विभागों का इस्तेमाल कर विपक्षी नेता या पार्टी के खिलाफ एक माहौल बनाया जाता है फिर होता है हृदय परिवर्तन का दौर. उसके बाद विरोधियों को पहले BJP के वॉशिंग मशीन में मोदी, सनातन, अखंड भारत, धर्म, के कंपोजिशन वॉशिंग पाउडर से धोया जाता है और पुराने सरे पापों को धोकर, बड़े से बड़े आरोपों और अपराधों से मुक्त करा कर माननीय बना दिया जाता. कई मामलों में देश ने देखा है कि ऐसे धो-धखार के निकले विपक्षी नेताओं के खिलाफ चल रहे पुराने मामलों को जल्द रफ़ा-दफ़ा कर दिया जाता है यार कई बार तो उनसे जुड़ी फायलें भी विलुप्त हो जाता है. अब फायल ही नहीं रहा तो बेचारी जाँच एजेंसियां करे तो करे क्या बोले तो बोले क्या.
यह पढ़ने, सोचने और जानने में व्यंग लगता है पर पिछले 10 सालों में जितने नेताओं ने पाला बदला है उनके पाला बदलने के पहले और बाद कि जानकारी देखकर समझ आ जाएगा की यह व्यंग नहीं दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र कि हक़ीक़त है. BJP के लगभग 20-25% लोकसभा प्रत्याशी ऐसे हैं जो किसी ना किसी विपक्षी पार्टियों से उगाहे गाए हैं. अब इसी रास्ते पर चल पड़ी है इंदौर की कहानी. सरकार ने इंदौर की जनता से लोकतंत्र के इस सबसे बड़े पर्व में मतदान की ताक़त को कमजोर कर दिया. इंदौर में इंडिया गठबंधन से कांग्रेस के प्रत्याशी अक्षय कांति बम ने नॉमिनेशन वापश लेकर BJP का दामन थाम लिया. अब RSS के दूसरे सबसे बड़े संसदीय क्षेत्र में भाजपा के सामने विपक्ष के किसी प्रमुख पार्टी का कोई उम्मीदवार नहीं है. क्या है ये परिभाषा है चुनाव आयोग और सत्तारूढ़ पार्टी के लेवल प्लेइंग फ़ील्ड का?
मध्य प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष जीतू पटवारी ने अक्षय कांति बम के नामांकन वापस लेने वाले फैसले पर बीजेपी पर आरोप लगते हुए कहा कि, “अक्षय बम के खिलाफ एक पुराने मामले में IPC की धारा 307(हत्या का प्रयास) लगी थी. इसे लेकर उन्हें पूरी रात अलग-अलग तरीकों से धमकाया गया. जिसके बाद उन्होंने अपना नामांकन वापस लिया है.”
इंदौर के अलावा मध्यप्रदेश के एक और सीट अब INDIA गठबंधन या विपक्षी गठबंधन से कोई प्रत्याशी चुनाव नहीं लड़ रहा, ज्ञात हो कि खजुराहो सीट गठबंधन के तहत समाजवादी पार्टी को दी गई थी लेकिन वहां की प्रत्याशी मीरा यादव का नामांकन निरस्त हो गया था.
इस प्रक्रिया की शुरुआत सूरत से हुई, सूरत लोकसभा सीट के सात दशक के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ है की वहाँ जनता को मतदान के अधिकार से वंचित कर दिया गया; सूरत में कुल 15 नामांकन पत्र भरे गए. इनमें कांग्रेस के नीलेश कुंभानी समेत 6 फॉर्म रद्द हो गए.
इस तरह बीजेपी उम्मीदवार मुकेश दलाल को छोड़कर आठ उम्मीदवारों के फॉर्म बचे थे. लेकिन इन आठ उम्मीदवारों ने भी अपने फॉर्म वापस ले लिए. लिहाज़ा मुकेश दलाल को निर्विरोध निर्वाचित घोषित कर दिया गया.
चंडीगढ़, सूरत, खजुराहो और इंदौर में चुनाव के नाम पर जो हुआ उसके बाद भी क्या यह अनुमान लगाना इतना मुश्किल है कि देश में लोकतंत्र को किस ओर ले ज़ाया जा रहा है? चाहे जिस किसी भी पार्टी के नेतृत्व में हो, अगर जनता ने ऐसी राजनीतिक घटनाओं पर आवाज नहीं उठाया तो वो दिन दूर नहीं जब हमारे देश में भी चीन और रुस के तर्ज़ पर चुनाव किया जाएगा. ध्यान रहे ये सिर्फ भाजपा की बात नहीं, हर-एक राजनीतिक पार्टी के रहते ऐसी स्थिति होने की संभावना है, इसलिए जनता को ही सतर्क रहना होगा, राजनेता और राजनीतिक पार्टी तो सत्ता और पावर के लिए ही होते हैं.
जनता जिस भी नेता या पार्टी को चुने, वो जनता का चुनाव होना चाहिए ना कि कोई राजनीतिक खेल का नतीजा, जनता भले BJP को इंदौर से 100% मतों से विजय बना दे, लेकिन वो जनता का चुनाव होना चाहिए ना कि कैलाश विजयवर्गीय या किसी राजनेता का. लोकतंत्र तभी जिंदा रहेगा जब चुनने का अधिकार जनता के पास हो और साथ ही सरकार और चुनाव आयोग जैसे संवैधानिक विभाग सम्पूर्ण निष्पक्षता से लोगों के चुनाव लड़ने के अधिकार की भी रक्षा करे. फ़िलहाल देश में हो रहे कुछ महत्वपूर्ण चुनावी घटनाओं को देखें तो ऐसा होता हुआ नहीं दिख रहा है. इन सब में सबसे बड़ी हार और विफलता भारतीय चुनाव आयोग और देश के जनता की है.
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