“चाय का चुनाव”

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हम सभी जानते हैं कि देश में लोकसभा का चुनाव चल रहा है, और हर राजनीतिक पार्टी अपने मुद्दों को लेकर जनता के बीच अपने प्रचार में जोरों शोरों से जुटी हुई है| एक तरफ राजनीतिक पार्टियाँ अपनी रणनीति को लेकर बैठक कर रही है, वहीं दूसरी तरफ एक और महत्वपूर्ण बैठक जनता की चल रही है, जिसका नजारा आप नुक्कड़ गलियों और चौराहों में देख सकते हैं, बस अंतर इतना है कि मीडिया इसका कोई कवरेज नहीं करता|

2014 के लोकसभा चुनाव से चाय शब्द का उपयोग चुनाव में बहुत होने लगा है और आप सभी जानते हैं इसका कारण क्या है यह किसी से छुपी हुई बात नहीं है| वैसे आम आदमी के जीवन में चाय एक अहम हिस्सा है|

जनता की बहस में कई तरीके के चाय लोग पीते नजर आ रहे हैं, जैसे कि अदरक, इलायची, बहुत सारे मसालों के मिश्रण की चाय, फीकी( बिना शक्कर) चाय और काली चाय| और इस समय देखा जाए तो सभी राजनीतिक पार्टियां अपनी अपनी अलग अलग किस्म की चाय बनाने की पद्धति को लेकर जनता के बीच में जा भी रही हैं |

अगर आप गौर करें तो इस समय दो महत्वपूर्ण प्रकार के चाय पर चर्चा चल रही है एक तो बहुत ही कड़क अदरक वाली चाय और दूसरी तरफ बहुत ही मसालो के मिश्रण से बना हुआ मसाला चाय| इशारा तो आप समझ ही गए होंगे| चाय बनाने और जनता को पेश करने की इस होड़ में तो राजनीतिक पार्टियां रिश्ते भी जोड़ रही हैं|
जनता के सामने बुआ और भतीजा चाय भी उपलब्ध है| एक पार्टी देशहित को लेकर चाय बनाने का दावा कर रही है इतना ही नहीं दुनिया में सबसे अच्छी चाय बनाने के क्रम में भारत को आगे ले जाने की बात कर रही है| कुछ और पार्टियां भी है जिनकी चाय थोड़ी फीकी है अभी चाय बनाने का इतना अनुभव नहीं है उन्हें लेकिन कोशिश कर रहे हैं| एक पार्टी तो दावा कर रही है उनसे अच्छी चाय तो कोई बना ही नहीं सकता उनके पुरखे भी यही काम करते थे और कई पुस्त से वे यही काम कर रहे हैं बाप, बेटे, दादा -दादी सभी ने मिलकर भारत वर्ष के लिए कई बार चाय बनाए हैं| यह अलग बात है कि लोग अब उसमें थोड़ी कड़वाहट की शिकायत करने लगे हैं|

आगामी 23 मई को लोकसभा का चुनाव परिणाम आ रहा है और आपने बॉलीवुड का वह मशहूर गाना सुना होगा “यह पब्लिक है सब जानती है” | जनता जो सुबह शाम चाय पी रही है और अपने रोजमर्रा के जीवन में उसका इस्तेमाल देख रही है वह सब समझती है कि लोग चाय बनाने की जगह पर क्या बनाना चाहते हैं वह देख रही है कि किसका किसका स्वार्थ आपस में मिलकर क्या बना कर पेश करने की कोशिश हो रही है| अगर चाय में दम होता है तो जनता उसे चलने देती है नहीं तो गलती से कभी अगर चाय के चुनाव में कहीं कोई चूक रह जाती है तो तुरंत ही दूसरे चाय बनाने की प्रक्रिया में लग जाती है हालांकि इसमें समय लगता है लेकिन तैयारी तो करनी है इसे आप और सभी राजनीतिक पार्टियां भली-भांति समझते हैं| देखते हैं 23 मई को किसके चाय का चुनाव होता है देश का माहौल गर्म है और चाय भी |

3 COMMENTS

  1. सही कहा
    चाय पे चर्चा से लेकर चाय से पर्चा

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