समाज सुधारक और राजनीतिज्ञ भीमराव अंबेडकर की आज जयंती है. उन्हें बाबा साहेब के नाम से भी जाना जाता है. वे स्वतंत्र भारत के प्रथम कानून मंत्री और भारतीय संविधान के प्रमुख वास्तुकार थे. उन्होंने दलित बौद्ध आंदोलन को प्रेरित किया और दलितों के खिलाफ सामाजिक भेदभाव के विरुद्ध अभियान चलाया.
डॉ. भीमराव अम्बेडकर के जीनव की कुछ महत्वपूर्ण जानकारियाँ:
नाम (Name) | डॉ. भीमराव रामजी अंबेडकर |
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जन्म (Birthday) | 14 अप्रैल, 1891 (Ambedkar Jayanti) |
जन्मस्थान (Birthplace) | महू, इंदौर, मध्यप्रदेश |
पिता (Father Name) | रामजी मालोजी सकपाल |
माता (Mother Name) | भीमाबाई मुबारदकर |
जीवनसाथी (Wife Name) | पहला विवाह- रामाबाई अम्बेडकर (1906-1935); |
दूसरा विवाह- सविता अम्बेडकर (1948-1956) | |
शिक्षा (Education) | एलफिंस्टन हाई स्कूल, बॉम्बे विश्वविद्यालय, |
1915 में एम. ए. (अर्थशास्त्र)। | |
1916 में कोलंबिया विश्वविद्यालय से PHD। | |
1921 में मास्टर ऑफ सायन्स। | |
1923 में डॉक्टर ऑफ सायन्स। | |
मृत्यु (Death) | 6 दिसंबर, 1956 |
आरंभिक जीवन
अम्बेडकर जी अपने माँ बाप की 14 वी संतान थे. उनके पिता इंडियन आर्मी में सूबेदार थे, व उनकी पोस्टिंग इंदौर के पास महू में थी, यहीं अम्बेडकर जी का जन्म हुआ था. 1894 में रिटायरमेंट के बाद उनका पूरा परिवार महाराष्ट्र के सतारा में शिफ्ट हो गया. कुछ दिनों के बाद उनकी माँ चल बसी, जिसके बाद उनके पिता ने दूसरी शादी कर ली, और बॉम्बे शिफ्ट हो गए. जिसके बाद अम्बेडकर जी की पढाई वहीँ बॉम्बे में हुई.
1906 में 15 साल की उम्र में उनका विवाह 9 साल की रमाबाई से हो गया जिसके बाद 1908 में उन्होंने 12वीं की परीक्षा पास की. छुआ-छूत जैसे सामाजिक कुरीतियों को अम्बेडकर जी ने बचपन से देखा था, वे हिन्दू मेहर कास्ट के थे, जिसे उस समय नीचा समझा जाता था व ऊँची कास्ट के लोग मेहर जाती को छूना भी पाप समझते थे, इसी वजह से अम्बेडकर जी को समाज में कई जगह भेदभाव का शिकार होना पड़ा.
इस भेदभाव और निरादर का शिकार अम्बेडकर जी को आर्मी स्कूल में भी होना पड़ा जहाँ वे पढ़ा करते थे. उनकी कास्ट के बच्चों को क्लास के अंदर तक बैठने नहीं दिया जाता था. टीचर तक उन पर ध्यान नहीं देते थे. यहाँ उनको पानी तक छूने नहीं दिया जाता था, स्कूल का चपरासी उनको उपर से डालकर पानी देता था, जिस दिन चपरासी नहीं आता था, उस दिन उन लोगों को पानी तक नहीं मिलता था.
गायकवाड के राजा सहयाजी से मिली मदद:
स्कूल की पढाई पूरी करने के बाद अम्बेडकर जी को आगे की पढाई के लिए बॉम्बे के एलफिन्स्टन कॉलेज जाने का मौका मिला, पढाई में वे बहुत अच्छे व तेज दिमाग के थे, उन्होंने सारे एग्जाम अच्छे से पास करे थे, इसलिए उन्हें बरोदा के गायकवाड के राजा सहयाजी से 25 रूपए की स्कॉलरशिप हर महीने मिलने लगी. उन्होंने राजनीती विज्ञान व अर्थशास्त्र में 1912 में ग्रेजुएशन पूरा किया. उन्होंने अपने स्कॉलरशिप के पैसे को आगे की पढाई में लगाने की सोची और आगे की पढाई के लिए अमेरिका चले गए. अमेरिका से लौटने के बाद बरोदा के राजा ने उन्हें अपने राज्य में रक्षा मंत्री बना दिया. परन्तु यहाँ भी छुआछूत की बीमारी ने उनका पीछा नहीं छोड़ा, इतने बड़े पद में होते हुए भी उन्हें कई बार अपमान का सामना करना पड़ा.
कोलंबिया यूनीवर्सिटी में उन्हें Doctrate की उपाधि मिली:
बॉम्बे गवर्नर की मदद से वे बॉम्बे के सिन्ड्रोम कॉलेज ऑफ़ कॉमर्स एंड इकोनोमिक्स में राजनैतिक अर्थशास्त्र के प्रोफेसर बन गए. अम्बेडकर जी आगे और पढ़ना चाहते थे, इसलिए वे एक बार फिर भारत से बाहर इंग्लैंड चले गए. इस बार उन्होंने अपने खर्चो का भार खुद उठाया. यहाँ लन्दन युनिवर्सिटी ने उन्हें डीएससी के अवार्ड से सम्मानित किया. अम्बेडकर जी ने कुछ समय जर्मनी की बोन यूनिवर्सिटी में गुज़ारा, जहाँ उन्होंने इकोनोमिक्स में अधिक अध्ययन किया. 8 जून 1927 को कोलंबिया यूनिवर्सिटी में उन्हें Doctrate की बड़ी उपाधि से सम्मानित किया गया.
दूसरी शादी 15 अप्रैल 1948 को:
अम्बेडकर जी की पत्नी रमाबाई की लम्बी बीमारी के चलते 1935 में म्रत्यु हो गई थी. 1940 में भारतीय संबिधान का ड्राफ्ट पूरा करने के बाद उन्हें बहुत सी बीमारियों ने घेर लिया. उन्हें रात को नींद नहीं आती थी, पैरों में दर्द व डायबटीज भी बढ़ गई थी, जिस वजह से उन्हें इन्सुलिन लेना पड़ता था. इलाज के लिए वे बॉम्बे गए जहाँ उनकी मुलाकात एक ब्राह्मण डॉक्टर शारदा कबीर से हुई. डॉ के रूप में उन्हें एक नया जीवन साथी मिल गया, उन्होंने दूसरी शादी 15 अप्रैल 1948 को दिल्ली में की.
डॉ भीमराव अम्बेडकर राजनैतिक सफ़र:
1936 में अम्बेडकर जी ने स्वतंत्र मजदूर पार्टी का गठन किया. 1937 के केन्द्रीय विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी को 15 सीट पर जीत मिली. अम्बेडकर जी ने अपनी इस पार्टी को ऑल इंडिया शीडयूल कास्ट पार्टी में बदल दिया, इस पार्टी के साथ वे 1946 में संविधान सभा के चुनाव में खड़े हुए, लेकिन उनकी इस पार्टी का चुनाव में बहुत ही ख़राब प्रदर्शन रहा.
कांग्रेस व महात्मा गाँधी ने अछूते लोगों को हरिजन नाम दिया, जिससे सब लोग उन्हें हरिजन ही बोलने लगे, लेकिन अम्बेडकर जी को ये बिल्कुल पसंद नहीं आया और उन्होंने उस बात का विरोध किया. उनका कहना था कि अछूत लोग भी हमारे समाज का एक हिस्सा है, वे भी बाकि लोगों की तरह नॉर्मल इन्सान हैं.
गाँधी जी से सम्बन्ध:
कहा जाता है की आंबेडकर एकमात्र ऐसे नेता थे जो गाँधी जी को महात्मा नही कहते थे. इसका जिक्र उन्होंने बीबीसी को दिए एक इंटरव्यू में किया था.
उनसे जब सवाल किया गया की “क्या आपको ऐसा नहीं लगता कि गाँधी जी ने मूलभूत बदलाव किए” तो उनका जवाव था
“नहीं, कभी नहीं. बल्कि, वो हर समय दोहरी भूमिका निभाते थे. उन्होंने युवा भारत के सामने दो अख़बार निकाले. पहला ‘हरिजन’ अंग्रेज़ी में, और गुजरात में उन्होंने एक और अख़बार निकाला जिसे आप ‘दीनबंधु’ या इसी प्रकार का कुछ कहते हैं.
यदि आप इन दोनों अख़बारों को पढ़ते हैं तो आप पाएंगे कि गांधी ने किस प्रकार लोगों को धोखा दिया. अंग्रेज़ी समाचार पत्र में उन्होंने ख़ुद को जाति व्यवस्था और अस्पृश्यता का विरोधी और ख़ुद को लोकतांत्रिक बताया. लेकिन अगर आप गुजराती पत्रिका को पढ़ते हैं तो आप उन्हें अधिक रूढ़िवादी व्यक्ति के रूप में देखेंगे.” यह पूरी इंटरव्यू बीबीसी हिंदी के आर्काइव में उपलब्ध है. पढने के लिए क्लिक करें.
यह भारतीय लोकतान्त्रिक व्यवस्था की विडंबना है कि हमारे सविंधान के निर्मता कभी चुनाव नहीं जित पाए. उन्होंने दो चुनाव लड़ा और दोनों ही बार कोंग्रेस के प्रत्यासी से उन्हें हार का सामना करना पड़ा. कहा जाता है इसका मुख्य वजह था उनका नेहरु जी से मतभेद. हिंदू कोड बिल और धारा 370 जैसे कुछ मुद्दों पर वो नेहरूजी से सहमत नही थे और यही कारन था की उन्होंने सितंबर 1951 में कैबिनेट से इस्तीफ़ा देते हुए विस्तार से अपने इस्तीफ़े के कारण गिनाए.
साल 1952 में आंबेडकर उत्तर मुंबई लोकसभा सीट से चुनाव लड़े. लेकिन कांग्रेस ने आंबेडकर के ही पूर्व सहयोगी एनएस काजोलकर को टिकट दिया और आंबेडकर चुनाव हार गए. कांग्रेस ने कहा कि आंबेडकर सोशल पार्टी के साथ थे इसलिए उसके पास, उनका विरोध करने के अलावा कोई और विकल्प नहीं था.
नेहरू दो बार निर्वाचन क्षेत्र का दौरा किया और आख़िर में आंबेडकर 15 हज़ार वोटों से चुनाव हार गए.
लेकिन बात यहीं खत्म नहीं हुई, आंबेडकर को 1954 में कांग्रेस ने बंडारा लोकसभा उपचुनाव में एक बार फिर हराया.
1990 में भारत रत्न से सम्मानित:
उन्हें 1990 में प्रतिष्ठित भारत रत्न पुरस्कार से सम्मानित किया गया था. उनको इतने देर से भारतरत्न दिए जाने को लेकर भी जानकार सवाल खड़े करते रहे हैं. खासकर लोग इस बात से नाराज दीखते हैं की भारत को बनाने वाले कुछ लोगों में शामिल आंबेडकर को 1990 में जाकर यह सम्मान दिया गया. जबकि उनसे पहले इंदिरा गाँधी और एम जी रामचन्द्रन जैसे राजनेताओं को यह सम्मान मिल गया. भारतरत्न की सूचि में उनका नाम बहुत निचे होना भी लोग उनका कांग्रेस से उनकी दुरी से जोड़कर देखते हैं.
बौध्य धर्म को अपनाया:
1950 में अम्बेडकर जी एक बौद्धिक सम्मेलन को अटेंड करने श्रीलंका गए, वहां जाकर उनका जीवन बदल गया. वे बौध्य धर्म से अत्यधिक प्रभावित हुए, और उन्होंने धर्म रुपान्तरण की ठान ली. श्रीलंका से भारत लौटने के बाद उन्होंने बौध्य व उनके धर्म के बारे में बुक लिखी व अपने आपको इस धर्म में बदल लिया. अपने भाषण में अम्बेडकर जी हिन्दू रीती रिवाजो व जाति विभाजन की घोर निंदा करते थे. 1955 में उन्होंने भारतीय बौध्या महासभा का गठन किया. उनकी बुक ‘द बुध्या व उनका धर्म’ का विभोजन उनके मरणोपरांत हुआ.
14 अक्टूबर 1956 को अम्बेडकर जी ने एक आम सभा का आयोजन किया, जहाँ उन्होंने अपने 5 लाख सपोर्टर का बौध्य धर्म में रुपान्तरण करवाया.