शायद आपको याद होगा 2017 में किस प्रकार बलात्कार व हत्या के आरोपी गुरमीत राम रहीम को पंचकूला की विशेष सीबीआई (केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो) अदालत द्वारा दोषी पाते हुए सजा सुनाने के बाद पँचकुला और सिरसा में दंगे कराए भड़क गाए थे. राम रहीम के समर्थकों ने पूरे शहर को जैसे बंधक बना लिया था सरकारी आकड़ोँ के अनुसार 38 लोगों की मौत हुई और कई दिनों तक आस पास का इलाक़ा बुरी तरह प्रभावित रहा. ये कोई जन आक्रोश नहीं था बल्कि राम रहीम का शक्ति प्रदर्शन था, राजनीतिक पार्टियों के सामने अपने समर्थकों का शक्ति परदर्शन करवाने जैसा था.
चुनाव के समय आते हीं हमारे देश में नेता और राजनीतिक पार्टियाँ सभी सम्भव समीकरण पर विचार करती है ताकि चुनाव जीता जा सके. दुःख की बात ये है की चुनाव जितने के लिए ऐसे लोगों का सहारा भी लिया जाता है जो हत्या और बलात्कार के आरोप में सजा काट रहा हो. 2017 में हरियाणा सरकार और प्रसासन राम रहीम के गुंडो की नियंत्रित करने में पूरी तरह असफल होने कि बाद अब बलात्कार व हत्या के दोषी राम रहीम के पैरोल के समर्थन में दिखाए दे रही है.
गुरमीत राम रहीम को दो महिलाओं से दुष्कर्म के मामले में अगस्त 2017 में 20 साल कैद की सजा सुनाई गई थी, इस साल जनवरी में पंचकूला में सीबीआई की विशेष अदालत ने उसे और तीन अन्य दोषियों को एक पत्रकार की हत्या के 16 साल पुराने मामले में आजीवन कारावास की सजा सुनाई है. ऐसे मामलों में सज़ायाफ्ता क़ैदी के साथ सख़्ती से पेश आने के वजय राज्य सरकार और प्रसासन पैरोल देने पर आमदा दिख रही है. राम रहीम की गिरफ़्तारी और जेल जाने तक देश ने देखा किस तरह से हरियाणा सरकार और प्रसासन ने ढीलाई बरती थी जिस कारण बाद अदालत को भी हस्तक्षेप करना पर गया था.
अब सुनरिया जेल में बंद राम रहीम को वहाँ के जेलर ने अच्छे चाल-चलन का सर्टिफिकेट दे दिया है. राम रहीम अब उसी सर्टिफिकेट का इस्तेमाल कर जेल से बाहर आने के प्रयास में है, कमाल की बात तो ये है की क़ैदी राम रहीम का कहना है कि वो खेती करना चाहते हैं. यही वजह है कि बाबा की तरफ से पैरोल के लिए आवेदन किया गया है. फ़िलहाल हरियाणा की खट्टर सरकार कहीं से भी इस पैरोल के विरोध करती हुई नहीं दिख रही, यहाँ तक की राज्य की विपक्षी पार्टी भी कुछ खुलकर बोलने से बच रही है, शायद राज्य के नेताओं के सोच में फ़िलहाल न्याय और कानून व्यवस्था से अधिक ज़रूरी वोट लग रहा है.
डेरा सच्चा सौदा के हरियाणा और आसपास के इलाक़ों में बड़ी संख्या में समर्थक हैं जो राम रहीम के पैरोल के विरोध करने से नाराज़ हो सकते हैं, यही कारण है की कोई प्रमुख पार्टी इसका खुलके विरोध नहीं कर रही. आम आदमी पार्टी से अलग होने के बाद नई पार्टी बनाने वाले योगेन्द्र यादव और उनकी पार्टी ने राम रहीम की रिहाई का खुला विरोध किया है. योगेन्द्र यादव की पार्टी स्वराज इंडिया ने प्रेस विज्ञप्ति जड़ी कर इसे अनैतिक, गैर कानूनी और जनहित विरोधी बताया.
स्वराज इंडिया ने इसका असली कारण चुनावी सौदेबाजी बताया है. स्वराज इंडिया, हरियाणा के अध्यक्ष राजीव गोदारा ने कहा कि डेरे की वोट लेकर बनी सरकार ने 2017 में डेरा मुखी को बचाने व खुश करने कब लिए हिंसा की आग में झोंक दिया था. इसके अलावा बी पिछले 5 साल में दो अन्य मौकों पर भी भाजपा की सरकार ने वोट पक्के करने की खातिर समाज को बांटने का हिंसक खेल किया है. सत्ता की लालसा में हिंसक व्यवहार से कामयाब होती राजनीति को आगे बढ़ाने के लिए खट्टर सरकार फिर से हरियाणा में सामाजिक शांति व कानून व्यवस्था का बलिदान करने की तैयारी कर रही है.
हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर का कहना है कि गुरमीत राम रहीम के परोल पर अभी कोई फैसला नहीं लिया गया है. गुरमीत राम रहीम सिंह ने हरियाणा के सिरसा में खेतों की देखभाल के लिए 42 दिन के परोल की मांग की है. वह बलात्कार व हत्या के मामले में दोषी करार दिया जा चुका है और जेल की सजा काट रहा है. मुख्यमंत्री खट्टर ने आगे कहा, ‘हर कैदी को एक समय के बाद परोल का अधिकार है. कोई भी व्यक्ति परोल मांग सकता है. उसे परोल मांगने से नहीं रोका जा सकता. कैदी परोल जेल अधीक्षक से मांगता है. अधीक्षक उसे जिला उपायुक्त को भेजता है. जिला उपायुक्त एसपी को भेजते हैं। अंतिम अनुमति डिविजनल कमिश्नर द्वारा दी जाती है. अभी इन सभी का फैसला आना बाकी है.’
स्वराज इंडिया गुरमीत राम रहीम के पैरोल को रोकने के लिए कोर्ट तक जाने को तैयार है, पार्टी ने बताया की अगर सरकार ने पैरोल दिया तो स्वराज इंडिया इसके विरुद्ध कोर्ट जाएगी. राम रहीम के पैरोल की ख़बर आने के बाद कई लोगों ने इसे राजनीतिक लाभ के लिए लिया जाने वाला ग़ैर क़ानूनी और जान विरोधी क़दम बताया जो स्वराज इंडिया के इन 4 बिंदुवों से और भी स्पष्ट हो जात है.
- हरियाणा के 2012 के कानून के तहत “हार्ड कोर” कैदी पैरोल का हकदार नहीं. इस अपराधी को अगस्त 2017 में बलात्कार केस में आजीवन सजा व जनवरी 2019 में हत्या केस में 20 साल सजा हुई है. लगातार दो केसों सजा होने के आधार पर यह हार्ड कोर कैदी की श्रेणी में आता है.
- अगस्त 2017 में सजा सुनाए जाने के समय डेरा समर्थकों ने हरियाणा व पंजाब में जिस तरह की हिंसा फैलाई थी, उसे देखते हुए स्पष्ट है कि डेरा मुखी को पैरोल मिलने से राज्य में शांति भंग होने व कानून व्यवस्था बनाई रखने के लिए फिर गोलियां चलेंगी व खून बहायेगा.
- छत्रपति हत्या केस में तो सजा भुगतते हुए अभी मात्र छह महीने हुए हैं, तो पैरोल की दरखास्त पर विचार ही क्यों हुआ।
- डेरा मुखी के मालिकाना हक वाली कृषि योग्य भूमि होने व इस अपराधी को बीते सालों में खेती करने का कोई सबूत है ही नहीं. यूं भी जुलाई महीना न तो खेती में फसलों की बुआई या कटाई का है ही नहीं.