बिहार के बड़े कम्युनिस्ट नेता रहे अजित सरकार की हत्या के आरोप में सजा काट चुके पप्पू यादव के साथ कन्हैया कुमार

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राजनीति विडंबनाओं से भड़ी एक अजीब खेल है. कहा जाता है राजनीति में हमेशा के लिए कोई किसी का ना दोस्त होता है और ना ही दुश्मन, लेकिन क्या सच में इस कथनी की कोई सीमा नहीं है? क्या नेताओं और राजनीतिक पार्टियों की पाखंडता की कोई सीमा नहीं होती है? इन सवालों का जवाब ढूँढना कठिन है, ऐसी ही एक राजनितिक प्रक्रिया अभी बिहार में चल रहा है जिसे इस लेख के माध्यम से हम समझाने का प्रयास करेंगे.

हम बात करेंगे भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के उभरते, चर्चित और मीडिया के चहेते कन्हैया कुमार व बिहार के बाहुबली सांसद पप्पू यादव के अप्रत्याशित मिलन की!

हाल के दिनों में आपने भी एक खबर पढ़ी होगी, कुछ दिन पहले CPI के नेता कन्हैया कुमार का विडियो सामने आया जिसमें वो पप्पू यादव और उनकी पार्टी को समर्थन और मदद करने की बात कर रहे हैं.

CPI (M) के पूर्व विधायक अजित सरकार की 14 जून 1998 को पूर्णिया जिले में अज्ञात लोगों ने गोली मार कर हत्या कर दी थी. अजित सरकर की हत्या भारतीय इतिहास की सबसे बड़ी राजनीतिक हत्या में से एक माना जाता है, अजित सरकार पूर्णिया के विधायक हुवा करते थे और CPI के सबसे अधिक लोकप्रिय नेता माने जाते थे; वो जाने जाते थे, अपने क्षेत्र की ग़रीब जनता की सहायता के लिए हमेशा तैयार रहने की आदत के कारण और शायद वही उनके मौत का कारण भी बना. कहा जाता है की अजित सरकार के ग़रीबों के प्रति उदारता के चलते जिले और आस पास के कुछ अमीर लोगों को परेशानी हो रही थी, साथ हीं उनके राजनीतिक विरोधी को भी जनता के बीच बढ़ रही उनकी लोकप्रीययता हज़म नहीं हो रही थी.

14 जून 1998 को जब अजित सरकर पूर्णिया के पास के एक गाँव हरदा से एक पंचायत करके लौट रहे थे तब उन्हें AK-47 द्वारा गोलियों से भुन दिया गया. अजित सरकार ना कोई मामूली नेता थे और ना हीं ये कोई साधारण हत्या थी. उनकी हत्या करने वाले हमलावर के अंदर कितनी नफ़रत थी इसका का अंदाज़ा आप इस बत से लगा सकते हैं की हमलावर ने अजित सरकार के शरीर में 107 गोलियाँ मरी थी. इस आपराधिक घटना में अजित सरकार की पार्टी के कार्यकर्ता अशफाकुल रहमान और ड्राइवर हरेन्द्र शर्मा की मौत हो गई थी तथा गार्ड रमेश ओराँव बुरी तरह जख्मी हो गया था. उस समय बिहार में क़ानून वेवस्था बहुत लचर थी और हत्या अपहरण एक मामूली घटना सी हो गयी थी, लेकिन अजित सरकार के मौत की ख़बरें आते ही पूरा शहर आक्रोशित हो गया था. राज्य सरकार को केंद्र से CBI जाँच की सिफ़ारिश तत्काल ही करनी परी.

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Image Source: ABP News

CBI जाँच में कई नाम समने आए लेकिन इसमें सबसे प्रमुख था राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव. पप्पू यादव 1990 के आसपास राजनीति में आए, उस समय उनकी छवि एक आपराधिक और बाहुबली नेता की थी, ना सिर्फ़ पूर्णिया या बिहार बल्कि पप्पू यादव उत्तर प्रदेश तक अर्जुन यादव के क्षेत्रछाया में आपराधिक गतिविधियों का संचलन करते थे. FirstPost में 2015 में आए एक लेख में कहा गया है की पप्पू यादव की जिम्मेदारी होती थी की वो नौजवानों को समझा बुझा कर बाहुबली अर्जुन यादव के संगठन से जोड़ें और उनके द्वारा संचालित आपराधिक गतिविधियों में सम्मिलित करें.

मधेपुरा के सिंहेस्वर स्थान से निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़े और जीते भी. इसके बद पप्पू यादव ने लालू यादव की पार्टी में शामिल होकर 1991 में पूर्णिया से लोकसभा चुनाव जीता. पप्पू यादव ने कई पार्टियाँ बदली लेकिन वो हमेशा जीतते रहे, निश्चित तौर पर पार्टी उनके लिए कुछ खास मायने नहीं रख रही थी.

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Image Source: IndiaTimes

पप्पू यादव से हाल में जुड़े बहुत से लोगों को शायद ये बात मालूम नहीं हो की उनपर पुरुलिया में हुए अर्मस ड्रोप मामले के प्रमुख आरोपी किम डेवी (Kim Davy) को सुरक्षित भागने में मदद करने का आरोप लगा था.

अजित सरकार मर्डर केस में सीबीआई ने राजेश रंजन उर्फ़ पप्पू यादव को मुख्य आरोपी बनाया, पप्पू यादव के अलावा अन्य आरपी थे पूर्व विधायक राजन तिवारी और अनिल यादव. सीबीआई ने विशेष अदालत के सामने 61 गवाह पेश किए थे, जिनमें से 23 मुकर गए. बचाव पक्ष की ओर से 27 गवाह पेश हुए थे. आखिरकर, CBI की विशेष अदालत 2009 में अजित सरकार मर्डर केस के तीनों आरोपी को दोषी पाया और विशेष न्यायाधीश वीरेन्द्र मोहन श्रीवास्तव ने तीनों आरोपी को उम्रक़ैद की सज़ा सुनाई. पप्पू यादव को कुल 14 साल जेल में बितना परा, बाद में हाई कोर्ट ने उन्हें और अन्य आरोपी को सबूत के अभाव में बरी कर दिया. हलांकि की CBI और अजित सरकार के परिवार ने सुप्रीम कोर्ट में हाई कोर्ट के फ़ैसले को चुनौती दिया है.

कन्हैया कुमार JNU में देश विरोधी नारे लगने के मामले के बाद प्रकाश में आए और अभी वो डुबती हुई लेफ़्ट पार्टी (CPI) के देश में आख़री उम्मीद के तरह हैं. अपने विभिन्न भाषणों में लोगों को राजनीति में आपराधिक छवि वाले लोगों से दूरी बना कर रखने का सलाह देने वाले कन्हैया अपने पहले ही चुनाव में ख़ुद ऐसे वक्ति से जा मिले हैं जिस पर बिहार में कॉम्युनिस्ट पार्टी के सबसे बड़े नेता रहे अजित सरकार की हत्या का आरोप है. जिसे निचली अदालत से दोषी तक थहराया जा चुका है. कन्हैया कुमार ने पूर्णरूप से पप्पू यादव को सहयोग करने की बात अपने एक सभा में कहा साथ हीं कन्हैया ने अपने कार्यकर्ता को भी पप्पू यादव को इस लोकसभा चुनाव में हरसंभव सहयोग करने की बत कही.

कन्हैया को भी उसी पार्टी का भविष्य के तरह देखा जा रहा है जिस पार्टी के नेता अजित सरकार थे और जिनकी हत्या करवाने के आरोप में पप्पू यादव सालों ज़ैल में बिता चुके हैं. क्या कन्हैया ने वोट की राजनीति के चक्कर में अजित सरकार की नफ़रतपूर्ण और निर्मम हत्या को भुला दिया, जबकि अजित सरकार के परिवार के लोग आज भी मामले में न्याय की उमीद लगाए बैठे हैं. क्या कन्हैया कुमार इस बात से सहमत है की अजित सरकार की हत्या में पप्पू यादव निर्दोष थे? अगर पप्पू यादव और अन्य आरोपी निर्दोष थे तो किसने करवायी थी अजित सरकार की हत्या? कन्हैया, कॉम्युनिस्ट पार्टी और पार्टी के समर्थकों को ये बात ज़रूर सोचनी चाहिय.

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पप्पू यादव 2014 में लालू यादव की पार्टी राजद के टिकट से मधपुरा के संसद बने लेकिन बाद में वो राजद और लालू यादव के लिए ही परेशानी का सबब बन गए; पप्पू ने राजद के सांसद रहते अपनी खुदकी राजनीतिक पार्टी बना ली जो राजद और महगठबंधन के अन्य सहयोगी पार्टियों के खिलाफ 2015 के बिहार विधान सभा चुनाव मे अपनी पार्टी के उम्मीदवारों को उतरा, हलांकि पप्पू की पार्टी “जन अधिकार पार्टी” एक भी विधानसभा सीट जितने असफल रही और कई उम्मीदवारों का ज़मानत भी जप्त हो गया. उसी चुनाव में पप्पू यादव ने कहा था अगर लालू के बेटे चुनाव जीत जाते हैं तो मैं राजनीति से सन्यास ले लूँगा.

बिहार में इस बार के लोकसभा चुनाव में मधेपुरा और बेगूसराय का मुक़ाबला बहुत रोमांचक होने वाला है क्योंकि महगठबंधन में जगह नहीं मिलने के बाद पप्पू यादव और कन्हैया कुमार क्रमशः मधेपुरा और बेगूसराय से चुनाव मैदान में है. मधेपुरा में पप्पू यादव के मुक़ाबला राजद के टिकट पर चुनाव लड़ रहे शरद यादव और JDU के दिनेश चंद्रा यादव से है. जबकि कन्हैया कुमार का मुक़ाबला नवादा से टिकट कटने के बद बेगूसराय से चुनाव मैदान में आए भजपा के नेता और मोदी सरकार में मंत्री गिरिराज सिंह से है. अब देखना है कन्हैया कुमार और पप्पू यादव के इस बेमेल अनौपचारिक गठबंधन से किसको कितना फायदा होता है? और क्या जनता स्वीकार करती है?