कुम्भ के आयोजन को लेकर कई पौराणिक कथाएँ प्रचलित हैं जिनमें से सर्वाधिक मान्य कथा देव-दानवों द्वारा समुद्र मंथन से प्राप्त अमृत कुंभ से अमृत बूँदें गिरने को लेकर है | कुछ कथाओं के अनुसार कुंभ की शुरुआत समुद्र मंथन के आदिकाल से ही हो गई थी। मंथन में निकले अमृत का कलश हरिद्वार, इलाहबाद, उज्जैन और नासिक के स्थानों पर ही गिरा था, इसीलिए इन चार स्थानों पर ही कुंभ मेला हर तीन बरस बाद लगता आया है। 12 साल बाद यह मेला अपने पहले स्थान पर वापस पहुंचता है। जबकि कुछ दस्तावेज बताते हैं कि कुंभ मेला 525 बीसी में शुरू हुआ था।
वही कुछ कथाओं के अनुसार कुंभ मेले का इतिहास कम से कम 850 साल पुराना है। माना जाता है कि आदि शंकराचार्य ने इसकी शुरुआत की थी | जबकि कुछ दस्तावेज बताते हैं कि कुंभ मेला 525 बीसी में शुरू हुआ था।
कुंभ मेला किसी स्थान पर लगेगा यह राशि तय करती है। रहा है। इसका कारण भी राशियों की विशेष स्थिति है।
कुंभ के लिए जो नियम निर्धारित हैं उसके अनुसार प्रयाग में कुंभ तब लगता है जब माघ अमावस्या के दिन सूर्य और चन्द्रमा मकर राशि में होते हैं और गुरू मेष राशि में होता है। यही संयोग वर्ष 2013 में 20 फरवरी को हुआ था, 2013 का कुंभ मेला प्रयाग ईलाहाबाद में लगा था । 1989, 2001, 2013 के बाद अब अगला महाकुंभ मेला यहां 2025 में लगेगा।