
पटना, 9 जुलाई 2025: पटना के ऐतिहासिक गांधी मैदान के पास मंगलवार को महागठबंधन द्वारा आयोजित “बिहार बंद” विरोध मार्च ने राजनीतिक हलकों में हलचल मचा दी। यह विरोध मार्च बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) के खिलाफ था, जिसे विपक्षी दलों ने “लोकतंत्र पर हमला” बताया है। हालांकि इस रैली की सबसे ज्यादा चर्चा एक और वजह से हो रही है, कांग्रेस नेता कन्हैया कुमार और जन अधिकार पार्टी के नेता पप्पू यादव को कांग्रेस सांसद राहुल गांधी और RJD नेता तेजस्वी यादव के साथ मंच साझा करने की अनुमति नहीं दी गई।
मंच पर चढ़ने से रोका गया
घटना उस वक्त घटी जब राहुल गांधी और तेजस्वी यादव अपने सहयोगियों के साथ एक खुले ट्रक (वैन) पर सवार होकर विरोध रैली का नेतृत्व कर रहे थे। इसी दौरान पप्पू यादव और कन्हैया कुमार भी उस ट्रक पर चढ़ने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन सुरक्षा कर्मियों ने उन्हें रोक दिया। कई कैमरों और मोबाइल फोन में रिकॉर्ड हुए इस घटनाक्रम के वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गए।
वीडियो में साफ देखा जा सकता है कि दोनों नेता मंच की ओर बढ़ते हैं, लेकिन सुरक्षा में तैनात कर्मी उन्हें हाथों से रोकते हैं और पीछे हटने का इशारा करते हैं। कुछ सेकंड तक दोनों नेताओं और सुरक्षाकर्मियों के बीच बातचीत होती है, लेकिन आखिरकार उन्हें नीचे ही रुकना पड़ता है।
क्या यह ‘प्रोटोकॉल’ था या ‘सियासी संकेत’?
इस घटनाक्रम ने कई राजनीतिक सवाल खड़े कर दिए हैं। क्या यह केवल सुरक्षा व्यवस्था का मामला था या फिर जानबूझकर दोनों नेताओं को मंच से दूर रखा गया?
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह एक स्पष्ट संकेत है — महागठबंधन में “पावर सेंटर” को लेकर असहमति है और राहुल गांधी के मंच पर केवल सीमित और चुने हुए चेहरों को ही स्थान दिया गया। पप्पू यादव, जो हाल ही में RJD के साथ गठबंधन की बात कर रहे हैं, और कन्हैया कुमार, जो कांग्रेस के एक लोकप्रिय युवा चेहरा माने जाते हैं, का मंच से बाहर रखा जाना अटपटा लग रहा है।
महागठबंधन में बढ़ती असहजता?
बिहार में INDIA गठबंधन की एकजुटता पहले से ही चुनौतीपूर्ण रही है। सीट बंटवारे, नेतृत्व और नीति को लेकर लगातार अंदरूनी मतभेद रहे हैं। इस घटना ने उन मतभेदों को एक बार फिर सार्वजनिक कर दिया है। कई विपक्षी नेताओं ने बंद कमरे में नाराज़गी भी जाहिर की है, हालांकि सार्वजनिक रूप से किसी ने बयान नहीं दिया।
कन्हैया कुमार के करीबी सूत्रों ने बताया कि उन्हें मंच पर चढ़ने की पूर्व अनुमति नहीं दी गई थी और यह तय किया गया था कि राहुल गांधी और तेजस्वी यादव ही मुख्य वक्ता होंगे। वहीं पप्पू यादव ने मीडिया से कहा, “मैं विरोध के लिए आया था, मंच के लिए नहीं। लेकिन यह भी सच्चाई है कि कुछ लोगों को जानबूझकर अलग रखा जा रहा है।”
सत्तापक्ष का हमला
भाजपा और जदयू नेताओं ने इस घटनाक्रम पर तीखी प्रतिक्रिया दी है। भाजपा प्रवक्ता ने कहा, “जो गठबंधन अपने ही नेताओं को मंच पर नहीं चढ़ने देता, वह जनता को क्या देगा?” जदयू ने भी इसे विपक्ष की एकजुटता में “दरार” बताया है।
जनता का सवाल: क्या यह ‘भूल’ थी या रणनीति?
सवाल यह भी उठ रहा है कि क्या यह केवल सीमित जगह और सुरक्षा प्रोटोकॉल की वजह से हुआ, या फिर यह जानबूझकर किया गया संकेत था, विपक्ष के भीतर शक्ति संतुलन को नियंत्रित करने का प्रयास?
जनता और सोशल मीडिया पर लोग इस घटनाक्रम को विपक्ष के भविष्य और एकजुटता के संकेतक के रूप में देख रहे हैं। बिहार की राजनीति में जहां जातीय और स्थानीय समीकरण गहराई से काम करते हैं, वहां इस तरह के सार्वजनिक संदेश दूरगामी असर डाल सकते हैं.
निष्कर्ष:
पटना में मतदाता सूची मुद्दे पर हुआ विरोध प्रदर्शन जहां एक ओर चुनाव आयोग के खिलाफ विपक्षी एकजुटता का प्रदर्शन था, वहीं मंच से कन्हैया कुमार और पप्पू यादव का बाहर रहना इस एकता की सीमाओं को भी उजागर करता है। यह घटना केवल एक सुरक्षा भूल नहीं, बल्कि राजनीतिक संदेश भी हो सकता है, जो आने वाले महीनों में बिहार की राजनीति की दिशा तय कर सकता है.