राफेल डील सच्चा सौदा या फिर हेराफेरी

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rafale deal by India is it a good deal or a scam full story in hindi-IndiNews-Hindi News Online | इंडी न्यूज़

पिछले कई दिनों से राफेल डील संसद के अंदर और बहार चर्चा का विषय बना हुआ है | विपक्ष ने मोदी सरकार द्वारा किये गये G2G (गवर्मेंट 2 गवर्मेंट) डील पे बहुत ही गंभीर सवाल खरे किये है | इस लेख के माध्यम से UPA और NDA सरकार के डील को विस्तार से समझने की कोशिश करेंगे साथ ही सौदे को लेकर उठ रहे सवालों का भी उत्तर तलाशने की कोशिश करेंगे |

सबसे पहले हम लोग NDA के G2G(गवर्मेंट 2 गवर्मेंट) डील को संक्षेप मे जानते हैं | इस डील के तहत सरकार लगभग 59,000 करोड़ रूपये मे भारतीय वायुसेना के लिए 36 लड़ाकू विमान और इसके साजो सामान को खरीदने की मंजूरी दी है | सांसद में बहस के दौरान राज्य रक्षा-मंत्री द्वारा पटल पर रखे गये कागजातों के आधार एवं विभिन्न राष्ट्रीय मीडिया के अनुसार इस सौदे के तहत ख़रीदे जाने वाली मुख्य जानकारियाँ निम्नलिखित है |

  • 36 Rafale fighters.
  • MICA Missiles.
  • Meteor Missiles.
  • Full weapons packages.
  • Performance-based logistics.
  • 14 India-specific enhancements and associated supplies

इसके साथ-साथ शुरुआत के 7 साल तक के रख-रखाव (Maintenance) और 50% ओफ़्सेट का भी प्रावधान है| बता दें की ओफ़्सेट एक प्रक्रिया है जिसके तहत विदेशी कंपनी को सौदे का एक हिस्सा भारत के उद्योग को बढ़ावा देने के लिए यहाँ पर ही निवेश करना होता है| ओफ़्सेट के लिए पार्टनर को चुनने का एकाधिकार कंपनी की होती है| 50% ओफ़्सेट के तहत Dassault Aviation ने भारत के सरकारी और गैर सरकारी संस्थानों के साथ मिल कर यहाँ पर विमानन के क्षेत्र में उद्योग को बढावा देगी |

अब एक नज़र UPA सरकार के द्वारा प्रस्तावित सौदे पे डालते है| ध्यान रहे मैंने यहा प्रस्तावित कहा है क्योंकि इसके सौदे पर कभी दोनों पक्षों ने सहमति नही जताई थी |

UPA सरकार द्वारा प्रस्तावित सौदे के तहत 126 विमान ख़रीदे जाने थे , जिसमे से 16 फ्रांस से आयात होना था और बाकी के भारत में ही ट्रान्सफर ऑफ़ टेक्नोलॉजी के माध्यम से HAL के द्वारा बनाया जाना था | यहाँ भी 50% ओफ़्सेट का प्रावधान था | HAL(Hindustan Aeronautical Limited) ये चाहता था की उसके द्वारा भारत मे निर्मित विमानों की guaranty भी Dassault दे जिसके लिए फ्रांसीसी कंपनी ने साफ मना कर दिया था | इसके अलावा और भी कुछ  बिंदु थे जिसपर सहमति नही बन पाई थी |

Dassault के आकलन के प्रत्येक मैन पॉवर के लिए HAL ने 2.9 मैन पॉवर की मांग की थी जिससे मैन्युफैक्चरिंग कॉस्ट के बहुत ज्यादा बढ़ जाने की आशंका थी | जो ओवर ऑल डील के अमाउंट पर भी असर डाल सकता था | उदाहरण के तौर पर भारत के मुख्य लड़ाकू विमान सुखोई MKI 30 को ले सकते है, रूस में निर्मित विमान की कीमत HAL के नासिक फ़ैक्टरी में निर्मित विमान की लगत से लगभग 100 करोड़ कम है|

भारत में निर्मित विमानों की Guaranty भी Dassault दे , जो की व्यावहारिक तैर पर संभव नही था क्योंकि विमान का इंजन एवं कुछ अन्य मुख्य उपकरणों के अलावा भी बहुत सारे सामानों को जोड़ कर बनता है| और यदि सभी प्रकार के उपकरणों के suppliers को गिने तो इनकी संख्या 5 दर्जनों से ज्यादा होगी | इतने विभिन्न कंपनी के निर्मित सामानों का quality control किसी बाहरी कम्पनी के लिए बहुत मुश्किल काम हो सकता था जिसके कारण Dassault ने इसे मानने से एकदम मना कर दिया था |

अब हम विभिन्न राजनीतिक पार्टियों द्वारा उठाये गये सवालों को देखते है |

क्या भारत ने राफेल को महंगे में ख़रीदा है?

लगभग सभी विरोधी पार्टी ने ऐसा कहा है और वो इसकी तुलना UPA के डील से करते हैं जो वास्तव में कभी फाइनल ही नहीं हुआ| भारत द्वारा किये गए राफेल डील के तुलनात्मक अध्यन के लिए हमनें कतार और dessault के बीच हुए डील को चुना | कतार ने 24 राफेल यूरो 6.7 BILLION मे मार्च 2017 में तय किया है और भारत ने 36 एयरक्राफ़्ट यूरो 7.8 बिलियन मे ख़रीदा है | दोनों देशों के डील को देखकर ऐसा तो नहीं लग रहा है की इस सौदे में कोई भी फ़ालतू खर्च किया गया होगा |

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Image Source: NDTV
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विपक्षी पार्टियों के द्वारा लगाए आरोपों को ध्यान से सुनने या पढ़ने के बाद ऐसा लगता है की वो खुद सुनिश्चित नहीं कर पा रहे की आरोप क्या लगाया जाये और इसका मौका दिया है खुद सरकार ने जो शुरु से एक-मत नहीं रही, सरकार कोई भी हो विपक्ष में बैठी पार्टियों का काम है विरोध करना जो की कहीं न कहीं लोकतंत्र में ठीक भी है और ऐसे में मौका सरकार खुद दे तो हल्ला तो मचेगा हीं |

क्या HAL से कॉन्ट्रैक्ट ले कर रिलायंस डिफेन्स को दे दिया गया?

ये सवाल भी लगभग सभी विरोधियों ने बार-बार उठाया है | पर इसमें सवाल खड़े करने वालों की अधूरी जानकारी के अलावा कोई सच्चाई नहीं दिखती, क्योंकि HAL पुराने सौदे के तहत विमानों का निर्माण Dessault के मदद से करने वाला था और रिलायंस डिफेंस को ओफ़्सेट के तहत एक्सेसरीज बनाने का कॉन्ट्रैक्ट मिला है| रिलायंस ही नहीं बल्कि इस क्षेत्र में काम करने वाली अन्य कई कम्पनियाँ अनेक एक्सेसरीज या छोटे-छोटे उपकरण बनाएगी जो लड़ाकू एवं कमर्शियल विमान मे उपयोग किया जायेगा |

क्या मोदी सरकार ने रिलायंस को कॉन्ट्रैक्ट दिलाने को कोई भूमिका अदा की ?

जैसा की हमने पहले लिखा है की रिलायंस को ओफ़्सेट के तहत आने वाले निवेश के एक हिस्से का कॉन्ट्रैक्ट मिला है और ओफ़्सेट वाले इन्वेस्टमेंट पर Dessault ही निर्णय ले सकती थी| और हम कह सकते हैं की यहाँ सरकार चाह कर भी कोई भूमिका नहीं निभा सकती है क्योंकि निजी क्षेत्र की कंपनी को ओफ़्सेट के तहत अपने साथी कंपनी या वेंडर का चुनाव अपने सहूलियत के हिसाब से करने की आज़ादी होती है, चूँकि ये सौदा भारत और फ़्रांस के सरकार के बिच हुआ था ऐसे में भारत सरकार या प्रधानमंत्री का HAL के पक्ष में किसी प्रकार का दवाब बनाना भी संभव नहीं होता |

हालाँकि भाजपा और मोदी सरकार को इस सवाल का सामान हमेशा करना होगा की अगर प्रधानमंत्री मोदी चाहते तो शायद ओफ़्सेट के तहत HAL को काम दिला सकते थे जो की पूर्णतः तर्कहीन दीखता है, आपको बता दें की ओफ़्सेट के तहत रिलायंस डिफेन्स एक मात्रा कंपनी नहीं है जिसके साथ Dessault ने करार किया है, इस ओफ़्सेट करार में भारत की छोटी बरी दर्जनों कंपनी शामिल है ऐसे में सिर्फ रिलायंस के बारे में सवाल उठाना कितना उचित होगा ये आप खुद समझ सकते हैं |

ऑफसेट के तहत कॉन्ट्रैक्ट पाने वाले रिलायंस अकेला है क्या ?

इस सौदे पर सवाल खड़े करने वाले सभी ने अपने बयानों में कुछ इसी तरह का माहौल बनाने का कोशिश किया है, परन्तु ये सत्य से पड़े है| सच तो ये है Dessault ने लगभग 50 कंपनी को कॉन्ट्रैक्ट दिया है जिसमें प्रमुख भागीदार है DRDO, L&T, Mahindra Group, the Kalyani Group and Godrej & Boyce इत्यादि| आपको ज्ञात होगा की DRDO एक सरकारी कंपनी है जो भारतीय रक्षा विभाग के लिए रिसर्च और डवलपमेंट का काम करती है| ऐसे में सिर्फ रिलायंस को फ़ायदा पहुंचने की बात करना वक्ताओं के अधूरी जानकारी को दर्शाता है|

कांग्रेस का आरोप की 30,000 करोड़ रिलायंस(अनिल अंबानी) को दे दिया गया कितना सच ?

राफेल डील 58,000 करोड़ का है जिसके तहत ओफ़्सेट की कुल रकम 30,000 करोड़ के3 लगभग बनता है| राफेल प्रोजेक्ट में कुल 4 कंपनियाँ शामिल है – Dassault, Safran, Thales and MBDA और ओफ़्सेट पर भी सभी का पूर्व निर्धारितअधिकार है| अनुमानित ओफ़्सेट की रकम मे Dassault- 15,000 करोड़, Safran-6,500 करोड़, Thales-5,500 करोड़ and MBDA-3,000 करोड़ की हिस्सेदारी बनती है| राफेल ने रिलायंस के साथ करार किया है जो की तकनिकी रूप से किसी भी हालत मे 15000 करोड़ से ज्यादा नही हो सकता है| Safran का DRDO के साथ कावेरी इंजन प्रोजेक्ट को पूरा करने पर सहमती बनने की बात कही जा रही है| जो की LCA तेजस प्रोजेक्ट के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।

निष्कर्ष:

वायु सेन और डिफेंस से जुड़े लगभग सभी अनुभवी और पूर्व वायु सेना अधिकारी स्पष्ट तौर पर ये बता रहे हैं की ये वायु सेना के लिए एक बहुत अच्छी डील है, चाहे वो नयी तकनीकी से लैश लड़ाकू विमान हो या इसकी कीमत |

ऐसे में ये पूरा विवाद एक राजनैतिक स्टंट के अलावा कुछ भी नही है, जिसका मौका खुद सरकार ने दिया है, सरकार चाहती तो इसे बहुत अच्छे तरीके से अपने पक्ष में भुना सकती थी लेकिन ऐसा हो नहीं पाया | विपक्ष मुद्दों के अभाव में इसे अनावश्यक तरीके से उछाल रही है| लड़ाकू विमानों का ख़रीदा जाना अभी के परिपेक्ष में कितना जरूरी है ये हम सभी को पता है| इन सबको जानते हुए विपक्ष का रवैया बिलकुल ही गैरजिम्मेदाराना है जहाँ हमारे राष्ट्रीय मुद्दों को भी निजी राजनैतिक लाभ के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है |

अभी भी समय है की सरकार सामने आये और राफेल सौदे से जुड़ी संवेदनशील जानकारियाँ के अलावे सभी जानकारियाँ लोगो को बताये साथ ही ओफ़्सेट के तहत करार हुए सभी कंपनियों का नाम भी बताये ताकि विपक्षों द्वारा फैलाया जाने वाले भ्रम का असलियत भी सामने आए |

 

इससे जुड़ी और जानकारी के लिए पढ़े राफेल डील की अनसुलझी पहेलियाँ

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