सुप्रीम कोर्ट में बिहार मतदाता सूची पुनरीक्षण पर सुनवाई: चुनाव आयोग को तत्काल राहत नहीं

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supreme court heard the case of CBI director alok verma -key judgement of the alok verma petition-सीबीआई मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सुनाया अहम् फैसला | अलोक वर्मा के याचिका पर सुनवाई - इंडी न्यूज़ | IndiNews

10 जुलाई 2025: सुप्रीम कोर्ट ने बिहार में Special Intensive Revision (SIR) के तहत चल रही मतदाता सूची पुनरीक्षण प्रक्रिया पर दायर याचिकाओं पर आज अहम सुनवाई की। कोर्ट ने जहां चुनाव आयोग की प्रक्रिया को रोकने से इनकार किया, वहीं याचिकाकर्ताओं को भी आंशिक राहत देते हुए आधार कार्ड और राशन कार्ड को वैध दस्तावेज़ के रूप में स्वीकार करने का सुझाव दिया। कोर्ट ने कहा कि यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि कोई भी मतदाता बिना उचित अवसर के मतदाता सूची से बाहर न हो।

दोनों पक्षों को मिली राहत

  • चुनाव आयोग को राहत: सुप्रीम कोर्ट ने SIR प्रक्रिया पर अंतरिम रोक लगाने से मना कर दिया और कहा कि आयोग का यह कार्य संविधान के दायरे में है।
  • याचिकाकर्ताओं को राहत: कोर्ट ने आयोग से कहा कि वह सत्यापन के लिए आधार, वोटर आईडी और राशन कार्ड जैसे दस्तावेज़ों को स्वीकार करने पर विचार करे, जिससे उन लोगों को राहत मिले जो आयोग की 11 दस्तावेजों की सूची में शामिल दस्तावेज नहीं रख पाते। यह याचिकाकर्ताओं की एक प्रमुख मांग थी, जिसे कोर्ट ने स्वीकार किया।

याचिकाकर्ताओं की आपत्तियाँ

याचिकाएँ राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के सांसद मनोज झा, तृणमूल कांग्रेस की महुआ मोइत्रा, कांग्रेस नेता केसी वेणुगोपाल, और एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) सहित कई राजनीतिक व नागरिक संगठनों ने दाखिल की थीं। इनका कहना था कि:

  • SIR प्रक्रिया में दस्तावेजों की कठोर मांग और कम समयसीमा के कारण गरीब, दलित और वंचित वर्गों के लाखों मतदाताओं के नाम मतदाता सूची से हटाए जा सकते हैं।
  • वरिष्ठ वकीलों कपिल सिब्बल और अभिषेक मनु सिंघवी ने इसे “नागरिकता जांच का छद्म प्रयास” बताया और कहा कि यह चुनाव आयोग के अधिकार क्षेत्र से बाहर है।

सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियाँ

  • कोर्ट ने कहा कि “नागरिकता की जांच चुनाव आयोग का कार्य नहीं है, यह गृह मंत्रालय का अधिकार क्षेत्र है।”
  • कोर्ट ने मतदाता पहचान के लिए प्रस्तुत दस्तावेजों की मौजूदा सूची को “अपूर्ण” बताया और आधार, राशन कार्ड, वोटर आईडी जैसे वैकल्पिक दस्तावेजों को मान्यता देने की सलाह दी।
  • कोर्ट ने कहा कि कोई भी नाम मतदाता सूची से बिना उचित नोटिस और सुनवाई के नहीं हटाया जा सकता।
  • ड्राफ्ट मतदाता सूची को 1 अगस्त से पहले प्रकाशित नहीं किया जाएगा, जिससे प्रक्रिया की न्यायिक समीक्षा की जा सके।

चुनाव आयोग का पक्ष

चुनाव आयोग ने कहा कि SIR का उद्देश्य मतदाता सूची को शुद्ध करना है, ताकि डुप्लिकेट या अवैध नाम हटाए जा सकें। आयोग ने बताया:

  • लगभग 4.54 करोड़ गणना फॉर्म एकत्र किए जा चुके हैं, जो कुल मतदाताओं का करीब 57% हैं।
  • पिछले दो दशकों में बिहार में बार-बार नाम जोड़ने और हटाने से सूची में गड़बड़ियाँ बढ़ गई हैं।

अगली सुनवाई और समयसीमा

  • सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को 21 जुलाई तक जवाबी हलफनामा दाखिल करने और याचिकाकर्ताओं को 28 जुलाई तक प्रत्युत्तर देने का निर्देश दिया है।
  • अगली सुनवाई की तारीख 28 जुलाई 2025 तय की गई है।

राजनीतिक प्रतिक्रियाएँ

  • विपक्षी दलों का आरोप: कांग्रेस, RJD और वाम दलों ने इस प्रक्रिया को मतदान अधिकारों पर हमला बताया है। 9 जुलाई को राहुल गांधी और तेजस्वी यादव के नेतृत्व में पटना में बिहार बंद और विरोध मार्च हुआ।
  • BJP का समर्थन: भाजपा और राज्य सरकार ने कोर्ट के निर्देशों का स्वागत किया, और इसे मतदाता सूची को सशक्त बनाने का कदम बताया।

मतदाता सूची पुनरीक्षण का चुनावी असर

बिहार विधानसभा चुनाव नवंबर 2025 में संभावित हैं। मतदाता सूची में बड़े बदलावों की संभावना और SIR की वैधता पर कोर्ट की अंतिम राय राज्य के राजनीतिक समीकरणों को प्रभावित कर सकती है।

सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को प्रक्रिया जारी रखने की अनुमति दी, लेकिन याचिकाकर्ताओं की चिंताओं को भी गंभीरता से लेते हुए दस्तावेज़ी छूट और प्रक्रिया की पारदर्शिता सुनिश्चित करने के निर्देश दिए। अगली सुनवाई अब 28 जुलाई को होगी, जिसके बाद मतदाता सूची से संबंधित अगला कदम तय होगा।