भारत, गाँव और इंसानी रिश्ता

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कभी गांवों का देश कहे जाने वाले भारत, समय के साथ कितनी तेजी से बदल रहा है इसे मापने का सबसे उपयुक्त पैमाने में से एक हमारे गांव की बदलती हालात हो सकती है. आज जितिया के पर्व भी है जिसे मां अपने पुत्रों के दीर्घायु होने की कामना से करती है.व्रत की कथा महाभारत काल से जुड़ी है.
आज हम आप सबको कुछ ऐसी सायरी से रूबरू करवाते है जो शायद आपके यादों को भी ताज़ा कर जाए.

नैनों में था रास्ता, हृदय में था गांव
हुई न पूरी यात्रा, छलनी हो गए पांव
-निदा फ़ाज़ली

मां ने अपने दर्द भरे खत में लिखा
सड़कें पक्की हैं अब तो गांव आया कर
– अज्ञात

ख़ोल चेहरों पे चढ़ाने नहीं आते
ख़ोल चेहरों पे चढ़ाने नहीं आते हमको
गांव के लोग हैं हम शहर में कम आते हैं
-बेदिल हैदरी

जो मेरे गांव के खेतों में भूख उगने लगी
मेरे किसानों ने शहरों में नौकरी कर ली
-आरिफ़ शफ़ीक़

उसने खरीद लिया है करोड़ों का घर
सुना है उसने खरीद लिया है करोड़ों का घर शहर में
मगर आंगन दिखाने आज भी वो बच्चों को गांव लाता है
-अज्ञात

शहर की इस भीड़ में चल तो रहा हूं
ज़ेहन में पर गांव का नक़्शा रखा है
– ताहिर अज़ीम

खींच लाता है गांव में बड़े बूढ़ों का आशीर्वाद,
लस्सी, गुड़ के साथ बाजरे की रोटी का स्वाद
– डॉ सुलक्षणा अहलावत

शहरों में कहां मिलता है वो सुकून जो गांव में था,
जो मां की गोदी और नीम पीपल की छांव में था
-डॉ सुलक्षणा अहलावत

आप आएं तो कभी गांव की चौपालों में
मैं रहूं या न रहूं, भूख मेजबां होगी
-अदम गोंडवी

यूं खुद की लाश अपने कांधे पर उठाये हैं
ऐ शहर के वाशिंदों ! हम गाँव से आये हैं
-अदम गोंडव