उत्तर प्रदेश की झाँसी में पुष्पेंद्र यादव की मौत एक पुलिस एनकाउंटर में हो गई, लेकिन ये UP पुलिस का कहना है और यूपी बिहार के साथ-साथ देश में बड़ी संख्या में ऐसे लोग हैं जो यूपी पुलिस के इस कहानी से इत्तेफाक नहीं रखते. पहली नजर में पुलिस की कहानी अच्छी दिखती है और आसानी से माना भी जा सकता है लेकिन पुलिस द्वारा कही गई कहानी के बाक़ी बिंदुओं पर ध्यान केंद्रित करने और यूपी पुलिस के हाल फिलहाल में भाजपा के पूर्व गृह राज्य मंत्री चिन्मयानंद और भाजपा के पूर्व विधायक कुलदीप सेंगर के बलात्कार मामले में दिखाए अनोखे प्रदर्शन को देखते हुए ऐसा लगता है जैसे कुछ तो झोल है जो पुलिस और यूपी सरकार लोगों से छुपा रही.
जैसे की हमने पिछले लेख में बताया था, पूरे मामले में यूपी पुलिस के अधिकारियों के बयानों में भी विरोधाभाष है, झाँसी के SSP ओपी सिंह का बयान आरोपी दारोगा के बयान से बिल्कुल अलग है, SSP कहते हैं की दारोगा धर्मेन्द्र सिंह चौहान छुट्टी पर थे, घटना के वक़्त कानपुर से अकेले लौट रहे थे, वहीं दारोगा धर्मेन्द्र सिंह चौहान का कहना है की वे निजी कार में सिपाही के साथ थाने से गश्त पर निकला था.
एसएसपी के अनुसार, दारोग़ा पर एक गोली चलाई गई और गोली चला कर पुष्पेंद्र बाइक से भाग गया; जबकि दारोग़ा का कहना है की एक गोली पुष्पेंद्र यादव और एक उसके भाई ने चलाई और गोली चलाकर वो उनकी कार लूट के भाग निकले. दारोग़ा धर्मेन्द्र सिंह चौहान ने अपनी हत्या के कोशिश के लिए एक FIR दर्ज कराया जिसमें पुष्पेंद्र यादव और उसके भाई रबिंद्रा और विनीत को आरोपी बनाया है, गौर करने वाली बात ये है की पुष्पेंद्र यादव के भाई रबिंद्र जिसपर हत्या की कोशिश का आरोप लगाय गया वो CISF में नौकरी करता है और उनका कहना है की घटना के वक्त वो दिल्ली के JLN स्टेडीयम मेट्रो स्टेशन में ड्यूटी कर रहा था.
यूपी पुलिस ने जो कहानी लोगों को बतायी है वो कन्विन्सिंग तो है लेकिन दुरुस्त नहीं, शायद अधिकारियों ने पूरी कहानी पर साझी सहमति बनाई हो या उसके लिए टाइम नहीं मिल पाया हो तभी जिस दारोगा पर मृतक के परिजन हत्या के आरोप लगा रहे उस अधिकारी और SSP के कहानी में बहुत गैप है. देश भर में बहुत से लोगों और नेताओं को पुष्पेंद्र यादव के परिवार का पक्ष अधिक सच्चा लग रहा है. परिजनों ने दावा किया है की पुष्पेंद्र यादव रिश्वत की दूसरी किस्त आरोपी दारोगा धर्मेन्द्र सिंह चौहान को देने थाना गया था जहाँ उसे किसी बात पर कहा सुनी होने के बाद मार दिया गया.
देश के कई हिस्सों में खास कर यूपी और बिहार में कई जगहों पर पुष्पेंद्र यादव के परिजन को न्याय दिलाने के लिए प्रदर्शन किया गया. कई शहरों में पुष्पेंद्र यादव के परिवार से संवेदना रखने वाले लोग एक साथ आकर जस्टिस फ़ोर पुष्पेंद्र यादव मुहिम चला रहे और मृतक के परिजनों द्वारा आरोपी पुलिस पर हत्या का मुक़दमा चलने की माँग को मज़बूती प्रदान कर रहे. युवा नेता और एनएसयूआई जिलाध्यक्ष निशांत यादव एवं मुरलीगंज नगर पंचायत अध्यक्ष श्वेत कमल के आह्वान पर बिहार के मधेपुरा में युवाओं ने बीते शुक्रवार को एक जनआक्रोश मार्च निकला जिसमें बड़ी संख्या में लोगों ने हिस्सा लिया. जनआक्रोश मार्च में शामिल लोगों ने यूपी पुलिस के और यूपी सरकार के खिलाफ नारेबाज़ी की और यूपी पुलिस पर फर्जी एनकाउंटर कर पुष्पेंद्र यादव की हत्या का आरोप भी लगाया.
इसके पहले, यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री और समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने पुलिस द्वारा पुष्पेंद्र यादव की चिता जलाने पर टिप्पणी करते हुए कहा कि विजयदशमी की सुबह से पहले रात के अंधेरे में झांसी में सत्ता की ताकत झोंककर पुष्पेंद्र यादव यादव का अंतिम संस्कार कर सरकार ने न्याय की चिता जलाई है. बता दें की मृतक के परिवारजन और स्थानीय जनता मांग कर रही थी कि फर्जी एनकाउंटर करने वाले दारोगा धर्मेंद्र सिंह के खिलाफ भी धारा 302 में रिपोर्ट लिखी जाए, तभी पुष्पेंद्र के शव को लिया जाएगा, लेकिन पुलिस ने परजनों की अनदेखी करते हुए अपनी कहानी पर भरोसा किया और आनन-फ़ानन में पुष्पेंद्र यादव के शव का अंतिम संस्कार कर दिया, मानो यूपी पुलिस ने दाह संस्कार नहीं लाश को ठिकाने लगाया हो.
यूपी पुलिस ने ये नया प्रचलन शुरू किया है जो भारत जैसे देश के लिए नया है, हमारे देश में मरने के बाद आतंकी के भी परिवार को लाश शौंपा जाता है. कभी मुँह से गोलियों की आवाज निकालने तो कभी जघन्न और शर्मनाक अपराध के आरोपी कुलदीप सेंगर और चिन्मयानंद जैसे लोगों के सामने नतमस्तक यूपी पुलिस पर कई फर्जी एनकाउंटर के आरोप लगे हैं जिसमें कई बार आरोप साबित भी किया गया. ऐसे में रात के अंधेरे में यूपी पुलिस द्वारा पुष्पेंद्र यादव का अंतिम संस्कार कर देना किस ओर इशारा करता है? वो भी तब जबकि परिजनों द्वारा मामले की जाँच की माँग की जा रही थी.