अपने बच्चों की कसम भुला कांग्रेस से गठजोड़ को उतावले केजरीवाल

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Photo Credit: The Quint

सच में राजनीति में कुछ भी हो सकता है, अरविंद केजरीवाल इसके ताजे उदहारण बन गए हैं. जैसा कि सबको पता है अरविंद केजरीवाल के लिए अन्ना हजारे का आंदोलन एक राजनीति लॉंचपैड साबित हुआ, अन्ना हजारे के अगवाई में लोकपाल आंदोलन के बाद और अन्ना हजारे के आपत्ति के बाद भी अरविंद केजरीवाल ने राजनीतिक पार्टी बनाया. लोकपाल आंदोलन को ना सिर्फ भारत बल्कि विदेशों में भी कवरेज मिला और ये सभी कांग्रेस के तात्कालिक मनमोहन सरकार के समय हुआ था. अन्ना हज़ारे के जनलोकपाल आंदोलन से लेकर अरविंद केजरीवाल की राजनीतिक पार्टी के गठन तक सभी घटनाक्रम कांग्रेस और तात्कालिक मनमोहन सरकार के कार्यकाल के दौरान हुए भ्रष्टाचार को आधार बना कर कांग्रेस के खिलाफ आमलोगों में गुस्से के बाद किया गया था.

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अन्ना हज़ारे और केजरीवाल के इस मुहिम में भारतीय नगिरिकों का एक अनौखा सहयोग देखने को मिला था, शायद जनता सरकार के खिलफ अपने अंदर पल गुस्से को आवाज़ मिलते देख रही थी. केजरीवाल के चुनावी पार्टी बनने के बाद लोगों में ख़ास कर जनलोकपाल आंदोलन से जुड़े लोगों में एक उमीद थी, लोगों को ऐसा लग रहा था शायद ये पार्टी बाक़ी पार्टियों से अलग होगी और शायद इसी कारण केजरीवाल की पार्टी आम आदमी पार्टी ने अपने पहले चुनाव में हीं दिल्ली में राज्य सरकार बनने में सफल रही. आम आदमी पार्टी की इस पहली सरकार को कांग्रेस ने बिना माँगे बाहर से समर्थन दिया था.

हालाँकि आम आदमी की पहली सरकार जो कांग्रेस के बाहरी समर्थन से बनी थी ज़्यादा दिन चली नहीं और दिल्ली में दोबारा विधान सभा चुनाव कराया गया जिसमें जनता दिल्ली की जनता ने फिर से केजरीवाल को मौक़ा दिया. अपने दूसरे चुनाव में आम आदमी पार्टी को दिल्ली की जनता का ज़बरदस्त सहयोग मिला और पार्टी ने कुल 70 में से 66 सीटों पर जीत हासिल किया, इस चुनाव में कांग्रेस को 00 और भाजपा को कुल 4 सीटों से संतोष करना परा था.

अब, केजरीवाल सरकार का एक टर्म पूरा होने वाला है और देश में आम चुनाव भी नज़दीक है लेकिन इन दिनों दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल और आम आदमी पार्टी का एक अलग ही रूप देखने को मिल रहा है. हालाँकि आम आदमी पार्टी अब ना वो पार्टी रही और ना हीं वो सभी नेता पार्टी में रहे जो शुरुआत में थे लेकिन ऐसा लग रहा है जैसे की पार्टी का आधार और मंशा भी अब वो नहीं रहा जो शुरूवाती दौर में दिखा था.

कांग्रेस पार्टी जो केजरीवाल को एक आँख नहीं सुहाती थी आज केजरीवाल उसी के साथ गठबंधन के लिए जान जीव लगा रहे हैं. केजरीवाल जिस तरह से कांग्रेस के साथ दिल्ली में गठबंधन के लिए प्रयास में लगे हैं ऐसे लग रहा है की वो एक किसी छोटी और कमज़ोर पार्टी का नेतृत्व कर रहे हैं जो भाजपा और मोदी से हताशा की स्थिति में है. वरना अगर केजरीवाल में सच्ची नैतिकता होती तो वो ऐसे पार्टी के साथ चुनाव पूर्व गठबंधन के लिए इतने डेसप्रेटे नहीं दिखते, जिस पार्टी के साथ कभी ना मिलने के लिए खुदको आम आदमी के नेता कहने वाले ने अपने बच्चे की क़समें खाई थी. कांग्रेस के तरफ़ से दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शिला दीक्षित ने पहली बार तो इस गठबंधन से माना कर दिया था लेकिन शिला दीक्षित का बाद में एक और बयान आया जिसमें उन्होंने पार्टी के शीर्ष नेताओं पर इस फ़ैसले को छोड़ दिया है और कहा जा रहा है की इस मामले में अब आख़री फ़ैसला कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी लेंगे.

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राजनीति में ना कोई हमेशा के लिए किसी का दुश्मन होता है ना दोस्त लेकिन जिस पार्टी का विरोध करके केजरीवाल राजनीति और फिर सत्ता में आए आज उसी के साथ गठबंधन के लिए चक्कर काट रहे हैं, ऐसे में उनको और दिल्ली के जनता को याद करना चाहिए अरविंद केजरीवाल का वो बयान जिसमें उन्होंने बच्चों की क़समें खा रहे और बता रहे की वो कभी भाजपा या कांग्रेस से नहीं मिलेंगे.

केजरीवाल के हालात का अंदाज़ा इस बात से भी लगाया जा सकता है की जब शिला दीक्षित के कड़े रूख के बाद उन्हें लगा की दिल्ली में बात नहीं बनने वाली है तो उन्होंने राहुल गांधी से दिल्ली नहीं तो हरियाणा में हीं गठबंधन कर लेने की अपील की.

सत्ता से दूर होते ही क्या कांग्रेस अच्छी हो गई? या फिर केजरीवाल को खौफ़ हो रहा भाजपा और मोदी का? क्या अब आम आदमी पार्टी और केजरीवाल को दिल्ली की जनता पर भरोसा नहीं रहा? ये सवाल सिर्फ़ दिल्ली और देश की जनता हीं नहीं केजरीवाल, आम आदमी पार्टी के कार्यकतावों को भी सोचना चाहिए.

आज livehindustan.com में आए एक ख़बर के अनुसार कई दिनों से चल रहे ना-नुकुर के बाद कांग्रेस-AAP के बीच गठबंधन लगभग तय है और इसकी अधिकारिक घोषणा जल्द ही हो सकती है.