JNU हिंसा मामले में दिल्ली पुलिस और सरकार का रवैया, टुकड़े-टुकड़े के बहाने किया जा रहा हेट्रेड गैंग का महिमामंडन

नकाब के पीछे कौन लोग थे? किसके इशारे पर JNU में आतंकवादी हमले के तर्ज़ पर हिंसा को अंजाम दिया गया? कौन है हेट्रेड गैंग और कौन है टुकड़े टुकड़े गैंग?

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JNU में हो रहे घटनाकर्म पर ध्यान दे तो ऐसा लगता है जैसे की कुछ लोगों को पता था कब क्या करना है, सब सुनियोजित लगता है. महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने जेएनयू कैंपस में हुई हिंसा की तुलना मुंबई में 26/11 को हुए आतंकी हमले से की है. मीडिया से बातचीत के दौरान ठाकरे ने कहा, “जो कुछ रविवार को जेएनयू में हुआ, वह कुछ ऐसा था जिसे हम 26/11 के बाद देख रहे हैं. सभी को पता होना चाहिए कि नकाब के पीछे कौन थे. कायर मुंह छिपा कर हमला करते हैं.”

सिर्फ़ उद्धव ठाकरे हीं नहीं, JNU में हिंसा में शामिल और हेट्रेड गैंग (Hatred Gang) के को छोड़ दें तो बाक़ी पूरा देश जानना चाहता है की नकाब के पीछे कौन लोग थे, सिर्फ़ यही नहीं देश को ये भी जानने का पूरा अधिकार है की किसके इशारे पर JNU में आतंकवादी हमले के तर्ज़ पर हिंसा को अंजाम दिया गया. सरकार और प्रशासन को बताना होगा की जो छुटभैया नेता इस हमले की जिम्मेदारी ले रहे उनके खिलाफ क्या कर्रयवाई की जा रही है.

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JNU में हिंसा सुनियोजित लगता है क्योंकि गृह मंत्री अमित शाह के इशारे पर काम कर रही दिल्ली पुलिस के सामने सामने सभी गुंडे हाथ में लाठी, डंडे और सरिया लेकर JNU में घुसकर हिंसा करते रहे और दिल्ली पुलिस दर्शक बन चुपचाप सब देखती रही. दिल्ली पुलिस के समने गुंडे घटनास्थल पर मौजूद नेताओं और पत्रकारों पर भी हमला करती रही पर दिल्ली पुलिस कुछ नहीं कर सकी. यही नहीं वह मौजूद लोगों ने और JNU हिंसा में घायल क्षात्रों ने दिल्ली पुलिस पर गुंडों को कैम्पस के अंदर जाने में और सही सलामत बाहर निकलने में मदद करने का भी आरोप लगाया है जिसकी जाँच होनी बेहद जरूरी है.

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JNU में घुसते गुंडे

क्या दिल्ली पुलिस इतनी कमज़ोर है की उसके सामने सब होता रहा और वो देखती रही, क्या ये वही पुलिस है जो कैम्पस में घुस कर गोलियाँ चलती है, लाइब्रेरी में गोले दागती है, बसों में आग लगती है लेकिन JNU में कुछ नहीं कर पाती? अगर ये एक आपसी झगरा मात्र था तो क्या देश की राजधानी की पुलिस इतनी कमज़ोर है की वो एक संस्थान में हो रहे आपसी झगरे को कंट्रोल नहीं कर सकती, ये कैसी पुलिस है जिसे वकीलों ने भगा-भगा के मारा और वो कुछ नहीं कर पायी??

बत दें कि बीते रविवार रात JNU में कुछ नकाबपोश हमलावर घुसे, जिनके पास डंडे और लोहे की छड़ थीं. उन्होंने स्टूडेंट्स और टीचर्स की जमकर पिटाई की और कैंपस में तोड़फोड़ भी की. इस हमले में जेएनयू छात्र संघ की अध्यक्ष आइशी घोष समेत 28 लोग घायल हो गए.

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Unmasked faces of mob that ran riot in JNU | Image Source: JNUTA

यही दिल्ली पुलिस तब और भी संदेहास्पद दिखती है जब हिंसा को मूक दर्शक बन देखते रहने के बाद उल्टा हिंसा के शिकार लोगों पर मुक़दमा दर्ज करती है वो भी हिंसा के चंद मिनट बाद जैसे की सब सुनियोजित हो, कब किसे क्या करना है किसे मारना है किस पर मुकदमा करना है सब सेट हो. JNU में हिंसा के 5 मिनट बाद दिल्ली पुलिस ने स्टूडेंट यूनियन की अध्यक्ष आइशी घोष के खिलाफ फटाफट दो एफआईआर दर्ज कर देती है, आइशी पर गार्ड के साथ मारपीट और सर्वर रूम में तोड़फोड़ के मामले दर्ज किए गए. ये दोनों ही घटनाएं कैंपस में तोड़फोड़ और मारपीट से दो दिन पहले की थीं. अगर आइशी घोष ने पर दर्ज मुकदमा सच है तो तो दिल्ली पुलिस दो दिन से क्या कर रही थी, ये कैसी क्रोनोलॉजी है की JNU में हिंसा होते हीं और आइशी घोष के बुरी तरह घायल होते हीं अचानक दिल्ली पुलिस को आइशी पर मुकदमा करने दर्ज करनी पर जाती है.

JNU की और सरकार पर सवाल उठाने वालों के साथ जैसा बर्ताव देश भर में हो रहा उसमें जवाब नहीं दिखता बस सवाल दिखता है. सोशल मीडिया से लेकर प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया तक CAA, डूब चुकी अर्थव्यवस्था, बेरोज़गारी और बदहाल शिक्षा वेवस्था तथा किसानों के हालत पर कोई बातें नहीं हो रही. अचानक एक झटके में सारे जरूरी मुद्दे को ठंढे बस्ते में डाल सब JNU का झुनझुना बजा रहे और गोदी मीडिया फिर से JNU को देश-द्रोही का अड्डा साबित करने और वहाँ कायर के तरह मुँह छुपा कर हिंसा करने वालों को सही साबित करने में लगी है.

JNU को गलत बता कर वहाँ हुए हिंसा को सही साबित करना देश के लिए बहुत बड़ी भूल है, लोगों को समझना होगा जो JNU को देशद्रोही और टुकड़े-टुकड़े गैंग बताने वाले ख़ुद हेट्रेड गैंग को बढ़ावा दे रहे उस हेट्रेड गैंग का शिकार हर वो वक्ति होगा जिसमें सवाल करने की हिम्मत होगी. अगर JNU में हिंसा सही है, वहाँ हिंसा करने वाले गुंडे सही हैं तो देश में होनी वाली हर वो घटना सही होगी जो सवाल पूछने वाले को दबाने और झूठे देशहित के नाम पर की जाएगी. अगर हर सवाल करने वालों को इसी तरह दबाया और कुचला जाएगा तो हमें एक बार फिर से सोचना होगा की हम आने वाली पीढ़ियों के लिए किस तरह का देश, समाज और लोकतंत्र बना रहे हैं.