क्या राज्यपाल JMM के चंपई सोरेन को बनने देंगे झारखंड के अगले मुख्यमंत्री?

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kya rajyapal JMM ke Champai Soren ko Banane Denge Jharkhand ke Agle Mukhyamantri-IndiNews
Image Source: newindianexpress | Champai Soren

झारखंड में पिछले दो-तीन दिनों से काफ़ी रोमांचक रजनीति खेल हो रहा है, जिसका मुख्य श्रेय ED को जाता है हलांकि विपक्षी पार्टी के माने तो इस जनमत के मखौल का असली श्रेय केंद्र सरकार और भाजपा को जाता है. विपक्ष के INDIA गठबंधन के अनुसार केंद्र सरकार और BJP सरकारी एजेन्सी का इस्तेमाल अपनी जागीर के अनुसार कर रहे हैं. यहाँ तक की चुनाव आयोग जैसे संवैधानिक संस्था भी एकदम एकतरफ़ा हो गई है, शायद यही है अच्छे दिन, उन नेताओं के अच्छे दिन जिन्हें गैर संवैधानिक और गैर क़ानूनी कार्यों से कोई परहेज़ नहीं है, ऐसे अधिकारियों के अच्छे दिन जो सत्ता में बैठे मुट्ठी भर लोगों के आदेश पर अपने ज़मीर, अपने पद की गरिमा को ताक पर रखने के लिए तैयार बैठे हैं शायद सिर्फ इसलिए की अच्छी पोस्टिंग, तरक़्क़ी और अच्छे रेटायरर्मेंट प्लान मिल सके.

अगर ये सारी बातें, या ये आरोप ग़लत है तो क्या इस देश में क़ानून सबके लिए एक नहीं होना चाहिए? कैसे भाजपा के साथ होने के साथ हीं अपराधियों खास कर नेताओं का गंगा स्नान हो जाता है और वो सभी आरोपों के मुक्त हो जाते हैं? अगर ED, CBI, IT, और चुनाव आयोग पक्षपात नहीं कर रही और केंद्र सरकार के इशारे पर भाजपा के करप्ट नेता के तरह काम नहीं कर रही है तो कैसे अजित पवार पर अब कोई कार्रवाई नहीं हो रही, कैसे असम के मुख्यमंत्री पर कोई कार्रवाई नहीं हो रही.? चंडीगढ़ मेयर चुनाव में जो नौटंकी हुआ उसपर कोई प्रशासन कैसे चुप रह सकती है, क्या चुनाव आयोग की पार्षद चुनने से लेकर भाजपा द्वारा जबरन मेयर बनवाने तक के ड्रामा में चुनाव आयोग की कोई भूमिका नहीं थी, क्या चुनाव आयोग को संज्ञान नहीं लेना चाहिए था? ये सारे सवालों के जवाब नहीं ढूँढा जा सकते, हाँ इन सवालों के जवाब के चक्कर में कहीं जवाब ढूँढने वाले को हीं इनमें से कोई एजेन्सी उठा ज़रूर सकती है. भाजपा के नेता ने तो लोकसभा में खुलेआम ED भेजने की धमकी दे हीं दिया है!

ED का जो खेल अजित पवार के घर हो रहा था वही खेल आम आदमी पार्टी के साथ हो रहा, वही बिहार में तेजस्वी यादव के साथ हो रहा है और वही झारखंड में हेमंत सोरेन के साथ हो रहा है. फर्क बस इतना है अजित पवार डर के पाला बादल लिया इसलिए बच गाए और अन्य मामलों में फ़िलहाल ED BJP की दाल नहीं गल रही.

ED की बैटिंग के बाद अब बारी है राज्यपाल की, पहली बात हम जो बचपन में राज्यपाल के बारे में पढ़ा करते थे बात वैसी नहीं है, राज्यपाल एक संवैधानिक पद होता है और राज्यपाल राजनीतिक तौर पर बिल्कुल निष्पक्ष होते हैं. ये सब वो है जो हमें सिविक्स की क्लास में पढ़ाया गया है लेकिन अब ये सब सटीक नहीं लगता है और ये पूर्णतः सच भी नहीं है. हलांकि चेक एंड बैलेन्स के लिए हमारे संविधान की ख़ूबसूरती अद्वितीय है, पर ये तभी तक कहा जा सकता है जब तक क़ानून का पालन क़ानून के मूल भावना के साथ किया जाए ना कि किसी खास इंसान या पार्टी के फ़ायदे के लिए तोड़-मरोड़ के अमल किया जाए.

अब सच ये है की केंद्र की सरकार किसी को भी अपने पसंद के अनुसार राज्यपाल चुन सकती है भले उस व्यक्ति पर भ्रष्टाचार के आरोप क्यों ना हो. अगर केंद्र सरकार चाहे तो अपने पार्टी के किसी भी नेता को राज्यपाल बना सकती है, जो कहने को तो एक संवैधानिक पद पर होते हैं लेकिन वो करते वहीं हैं जो उनकी पूर्व पार्टी या केंद्र सरकार के फ़ायदे की बात हो. पिछले कुछ सालों की राजनीतिक घटनाओं को याद करें तो समझ आता है की कई राज्यों के राज्यपाल सत्तारूढ़ पार्टी की सरकारों और विपक्षी पार्टियों की सरकारों में किस तरह भेदभाव करती है. यहाँ तक विपक्षी पार्टी के सरकार को बजट के लिए भी कोर्ट जाना पर जाता है.

किसी भी राज्य में सरकार बनने और बिगरने में राज्यपाल की भूमिका अहम होती है, लेकिन पिछले कुछ सालों में देखा गया है की राज्यपाल द्वारा केंद्र की सत्तारूढ़ पार्टी को विपक्षी पार्टियों में फूट डालने और विधायकों की ख़रीदारी/शॉपिंग का पूरा मौक़ा दिया जाता है. बिहार में जहां केंद्र की सत्तारूढ़ पार्टी के फ़ायदे की बात थी तो एक दिन में नई सरकार बना दी गई लेकिन वहीं झारखंड में जहां माहौल बेहद नाज़ुक है और पार्टी तोड़ने से लेकर हॉर्स-ट्रेडिंग का माहौल बना है, वहाँ बहुमत वाली गठबंधन को जल्द मौका नहीं दिया जा रहा है, या कहें कि पार्टी तोड़ने और हॉर्स-ट्रेडिंग करने वालों को भरपूर मौक़ा देने का प्रयास किया जा रहा है.

JMM के पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की गिरफ़्तारी के बाद से भाजपा का एक खास ग्रूप यहाँ ऐक्टिव हो गया है जो किसी भी तरह यहाँ की बहुमत वाली गठबंधन को कमजोर कर चुनाव में हारने के बाद भी अपनी सरकार बनाने की प्रयास में लगा है, भाजपा के पूर्व सांसद और झारखंड के राज्यपाल C. P. Radhakrishnan देरी के कारण भाजपा के उस खास ग्रूप को भरपूर मौक़ा मिल रहा झारखंड में ज़बरन BJP को सरकार बनाने का. अब सारा दारोमदार झारखंड के राज्यपाल पर है कि बहुमत के साथ बैठे चंपई सोरेन को मुख्यमंत्री बनने का मौक़ा मिल पाएगा या नहीं.

JMM-Congres गठबंधन के चुने हुए नेता चंपई सोरेन बहुमत के लिए जरुरी विधायकों के हस्ताक्षर के साथ राज्यपाल C. P. Radhakrishnan से सरकार बनाने के आमंत्रण के लिए इंतेज़ार कर रहे हैं. झारखंड के राज्यपाल के न्यौते का इंतजार कर रहे चंपई सोरेन ने कहा कि 81 सदस्यों वाली विधानसभा में उनके पास 47 विधायकों का समर्थन है. चंपई सोरेन ने कहा कि बुधवार को हमने 43 विधायकों के समर्थन का पत्र राज्यपाल को सौंपा था.

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Image Source: indiatimes

इस बीच खबर है की राज्यपाल की ओर से हो रही देरी के बाद INDIA गठबंधन के 40 विधायकों को हैदराबाद ले जाने का प्रयास किया जा रहा है, खबर है की विधायकों को बस से राँची एयरपोर्ट ले ज़ाया गया है, जहां से चार्टेड प्लेन से हैदराबाद ले जाने की पूरी तैयारी हो रही थी लेकिन ख़राब मौसम के कारण हैदराबाद ले जाने वाली फ्लाइट फ़िलहाल रद्द हो गई है.